रात के करीब बारह बजे होंगे लेकिन गणेश बाबू छत पर चहल कदमी कर रहे थे. अचानक एक विचार उनके मन में आया.
पाटिल जी का कत्ल मधुरानी ने ही करवाया है और यह बात मधुरानी और मधुकर बाबू के अलावा सिर्फ़ मुझे मालूम है...
क्या इस बात का लाभ उठाया जा सकता है?....
क्यों नहीं?… यक़ीनन इस बात का फायदा उठाया जा सकता है...
मैं यह बात जानता हूँ ऐसा मान कर ही तो मधुरानी के व्यवहार में अचानक परिवर्तन आया..
बिना कुछ करे धरे मधुरानी ने नब्ज़ टटोलने के बहाने अपना हाथ मेरे हाथों मे दे दिया....
अगर मैं उसको ब्लॅकमेल करूँ तो?...
तो...तो... वह मेरी खातिर कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाएगी...
गणेश बाबू के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान खेलने लगी थी.
यूँ भी उसने मुझे वहाँ दोबारा आने का न्योता दिया है..
यानी की इतने दिन मैं उसकी कार्यकर्ता मक्खी था और अब उसकी नर मधुमक्खी बनने का मौका हाथ लगा है..
ले..लेकिन.. इसमे ख़तरा है...
इसमें जान भी गँवानी पड़ सकती है..
मधुरानी के मर्द की और पाटिल जी भी अपनी हवस के एवज़ में अपनी जान से हाथ धो बैठे ..
उन्हें मधुरानी की अदाएँ याद आने लगीं
उसकी वह चंचल शोख नज़र...
उसकी वह मदहोश कर देने वाली मुस्कुराहट...
उसका वह नर्म मुलायम स्पर्श.
जी करता है उसकी बाँहों में मर जाऊं....
जब एक नर मक्खी रानी मक्खी से संभोग करती है तो उसे बखूबी मालूम होता है की इसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी है...
क्योंकि यूँ भी कई नर मधुमक्खियाँ इसी तरह मौत के घाट उतर चुकी होती हैं...
लेकिन केवल उस एक पल की खुशी पाने के लिए वह नर मक्खी रानी मक्खी से संभोग करने के लिए तैयार हो जाती है...
पूरी ज़िंदगी का मज़ा यदि उस एक पल में मिलता हो...
तो पूरी ज़िंदगी यूँ घुट घुट के जीने में क्या मतलब?...
यूँ भी मेरी ज़िंदगी में रखा क्या है?...
वह बेरोज़गार, बद दिमाग़ , बद तमीज़ कपूत जो मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ता है ?...
और वह अनाड़ी झगड़ालू औरत जिसने जीना हराम कर रखा है..?
उनके लिए अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने से तो अच्छा है की मैं अपनी जिंदगी मधुरानी के नाम कुर्बान कर दूं...
क्रमशः
Original Novel by Sunil Doiphode
Hindi Version by Chinmay Deshpande
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