गणेश की अब गाँववालों से अच्छी ख़ासी जान-पहचान हो गयी थी और वह उनसे काफ़ी घुल -मिल गया था . गाँव के नौजवानों के मिलने जुलने का स्थान टेलर की दुकान हुआ करता था . मारुति टेलर की दुकान पर शाम को उसके कई हमउम्र लोगों का जमावड़ा सा लगता था , गाँव की खबरों का ताज़ा हाल वहाँ शाम में मिल जाया करता था . वहीं के कुछ लड़के शाम ५ से ७ के दरमियाँ आम के बगीचे में क्रिकेट खेला करते , शाम को खेल कर लौटने के बाद उनके मिलने, हँसी मज़ाक करने का अड्डा मारुति टेलर की दुकान पर हुआ करता था . बाद में गेंद बल्ला और स्टप्स इत्यादि चीज़ें उसी टेलर की दुकान में रखीं जातीं. सो सब लड़के खेलने से पहले और खेलने के बाद वहीं मिलते थे. गणेश को यह देख कर बड़ा अचरज हुआ के इतने पिछड़े गाँव के लड़कों को क्रिकेट खेलने का शौक है , उसने जब जानने की कोशिश की तो यह बात सामने आई कि गाँव के लड़के रेडियो पर क्रिकेट कमेंट्री सुना करते थे , गावसकर , वेंगसरकर , अमरनाथ जैसे खिलाड़ियों से वे वाकिफ़ थे . फिर क्या था बढ़ई के छोरे ने बल्ला , स्टंप बनाने की ज़िम्मेदारी ली और चमार के लौंडे ने गेंद बनाने की , तो यूँ कर गाँव के लड़के क्रिकेट खेलने में रम जाते.
गणेश भी शाम को वहाँ उन लड़कों के साथ खेलने जाया करता . कुछ कुछ लड़कों का खेल देख कर वह हैरान हो जाता . महदा नाम का एक लड़का जब बॉलिंग करता था तो अच्छे अच्छों के छक्के छूट जाते ,उसकी उछाल खाती तेज गेंदों से डर कर बल्लेबाज़ एक तरफ हट जाते . कई लोग उसकी उछाल खाती गेंदों से ज़ख़्मी हुए थे . फिर मारुति टेलर ने ऐसी दुर्घटनाओं से बचने के लिए पॅड्स बनाए . एक दूसरा लड़का लोहा सिंह बिना ग्लव्स के कीपिंग करने में माहिर था , गेंद चाहे कितनी ही तेज या उछाल भरी क्यों न हों उससे छूटती न थी . एक बार हैरत में गणेश ने उसके हाथ देखे थे, तो उसने पाया था की वह लड़का मेहनत मज़दूरी किया करता था इसलिए हथेलियों की चमडी सख़्त हो गयी थी, यह उसके नॅचुरल ग्लव्स बन गये थे . जिस लड़के को सारे गाँव के लोग पगला कहते थे वह तो हरफ़नमौला था , जब उसको गेंद डालने के लिए कहा जाता तो अर्जुन के निशाने की तरह उसका निशाना केवल तीन स्टॅंप्स हुआ करते और जब वह बल्लेबाजी करता तो उसे सिर्फ़ गेंद ही दिखाई देती , वह खूब लंबी हिट लगाता . फीलडिंग में तो वह माहिर था ही. मोटर मेकेनिक और बबन एलेक्ट्रीशियन तो चालाक खिलाड़ी थे , हरदम नये स्ट्रोक्स खेलते और नयी गेंदे फेंकते थे , कहल की तकनीक के मामले में उनका कोई सानी न था . आफ़िस का पांडु क्रिकेट का समान मैदान में लाया करता इसके बदले में उसे एक दो ओवर बॅटिंग करने दी जाती लेकिन समान वापस रखने की जब बारी आती तो वह अक्सर नदारद होता.
मारुति टेलर कभी कभार एक-दो गेंद खेल कर वापस अपनी दुकान पर जाया करता , उसे उसके काम से ही फ़ुर्सत न होती . जब यह साहब बॅटिंग करने आते थे तो उनका ध्यान गेंद के बजाए धोती संभालने में जादा होता था .
"वाइड बॉल" को वे लड़के " वाईट बॉल " कहते थे और आउट की अपील " आउट है" कह कर करते थे , ऐसे ही मज़ाक मज़ाक में कई बातें होतीं थी जिनको देख सुन कर गणेश को बड़ी हँसी आती थी . छ:- छ: लड़के दोनो टीमों में होते थे इसलिए कामन फीलडिंग होती थी , और ऐसे में अंपायर बॉलिंग करने वाली टीम के किसी खिलाड़ी को बनाया जाता , बोलर जब गेंद डालता था और वह गेंद जब बल्लेबाज के पॅड्स से टकराती थी तो सबसे पहली अपील अंपायर बना लड़का ही करता था , वह यह भूल जाता की वह अंपायरिंग कर रहा है ऐसे में सब लोग हंस हंस कर लोट पोट हो जाते .
शाम में लोटा ले कर खेतों में शौच के लिए जाने वाले लोग भी आम के बगीचे में थोड़ी देर रुक कर क्रिकेट का मज़ा लेते और भूल जाते कि वह क्या करने निकले थे .
जब से गणेश ने इन लड़कों के बीच खेलना चालू किया था तब से मधुरानी भी कई बार शाम में आया करती और गणेश की हौसला अफज़ाई किया करती . कभी कभी तो पाटिल साहब और सरपंच जैसे रसूख्दार लोग भी वहाँ आया करते . पाटिल जी तो सीधे मैदान में घुस जाया करते और बल्ला छीन कर खुद बल्लेबाजी करने लगते
" ए लड़के ज़रा बता तो कौन लौंडा अच्छी गेंद डाले है ? "
"पाटिल जी ओ महदू अच्छी तेज गेंद डाले है "
" ओ मेरा मतलब वो ना था लड़के , उसका नाम बता जिसकी गेंद पीटी जा सके है"
फिर बबन बहुत ही धीमी धीमी गेंद पाटिल जी को डाला करता , पाटिल जो वह बल्ला घुमाते की गेंद सीधे मैदान के बाहर हो जाती.
एक दो ओवर खेल कर पाटिल जी बल्ला फेंक देते और कहते ," हद है साला , क्या मरी मरी गेंद डालते हो अरे लड़कों इस विलायती खेल से तो अपना गिल्ली डंडा बेहतर है"
लड़के मुँह छिपा कर हंसा करते. यह देख पाटिल जी बड़बड़ाया करते "बर्बाद है आजकल के लड़के .. हमारे वक्त हम लोग तो कबड्डी , गिल्ली डंडा , खो खो खेलते फिर रात को छुपान छुपैया खेलते थे"
लड़के अपना खेल जारी रखते.
क्रमशः ..
Original Novel by Sunil Doiphode
Hindi Version by Chinmay Deshpande
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