Hindi books collection - ELove ch-38 काली बॅग
Inspirational thoughts -
If you would create something,
you must be something.
--- Johann Wolfgang von Goethe
जंगलमें सब तरफ सुखे पत्ते फैले हूए थे. उन सुखे पत्तोकों रौंदते हूए एक काले शिशे चढाई हूई कार धीरे धीरे उस जंगलसे गुजरने लगी. वह कार जब जंगलसे गुजर रही थी तब उन सुखे पत्तोंके रौंदनेसे एक अजिबसी आवाज उस जंगलके शांतीमे बाधा डाल रही थी. आखिर एक पेढके पास वह कार रुक गई. उस कारके ड्रायव्हर सिटवाला शिशा धीरे धीरे निचे खिसकने लगा और अब वहां ड्रायव्हीग सिटपर बैठी हुई काला चष्मा लगाई हूई अंजली दिखने लगी. उसने एक पेढपर लगाई लाल निशानी देखी और उसने बगलके सिटपर रखी एक ब्रिफकेस उठाकर खिडकीसे उस निशान लगाए पेढकी तरफ फेंक दी. ब्रिफकेसका 'धप्प' ऐसा आवाज आ गया. उसने फिरसे अपनी पैनी नजर चारो तरफ घुमाई और अपनी कार स्टार्ट कर वह वहांसे चली गई.
जंगलसे बाहर निकलकर अंजलीकी कार अब प्रमुख रस्तेपर आ गई थी. तभी अंजलीका मोबाईल बजा.
अंजलीने डिस्प्ले ना देखते हूएही वह अटेंड किया, '' हॅलो...''
'' हॅलो... मै इन्स्पेक्टर कंवलजीत बोल रहा हूं ...'' उधरसे आवाज आया.
'' यस अंकल..''
'' पैसे कब और कहां भेजने है इसके बारेमें ब्लॅकमेलरकी मेल तुम्हे आईही होगी '' इन्स्पेक्टर कंवलजीतने पुछा.
'' हां आई थी .. सच कहूं तो मै अब वहां पैसे पहूंचाकर वापसही आ रही हूं '' अंजलीने कहा.
'' व्हॉट... '' इन्स्पेक्टरके स्वरमें आश्चर्य स्पष्ट झलक रहा था.
''आय जस्ट कांन्ट बिलीव्ह धीस... तुमने मुझे बताया नही ... हम जरुर कुछ कर सकते थे. '' इन्स्पेक्टरने आगे कहा.
'' नही अंकल अब यहां मुझे पुलिसका शामिल होना नही चाहिए था . ... एक बार तो पुलिस पुरी तरहसे नाकामयाब रही है ... यहां मै चान्स लेना नही चाहती थी ... और मुझे चिंता सिर्फ विवेककी है ... पैसे जानेका अफसोस मुझे नही ... बस ब्लकमेलरको पैसे मिलनेके बाद वह विवेकको छोड देगा ... और पुरा मसलाही खत्म हो जाएगा '' अंजलीने कहा.
'' मै प्रार्थाना करता हूं की तूम जैसा सोचती हो... सब वैसाही हो ... लेकिन मुझे चिंता होती है तो बस इस बातकी की अगर वैसा नही हुवा तो ?'' इन्स्पेक्टरने कहा.
'' मतलब ?'' अंजलीने पुछा.
'' मतलब ... तुमने पैसे देकरभी उसने अगर विवेकको नही छोडा तो ?'' इन्स्पेक्टरने अपना डर जाहिर किया.
अंजली एकदम सोचमें पड गई.
अतूल और अलेक्स उस काले ब्रिफकेसके सामने बैठे थे. उनके चेहरेपर खुशी झलक रही थी. आखिर अतूलने अपने आपको ना रोक पाकर वह बॅग खोली. दोनो आंखे फाडकर उन पैसोंकी तरफ देख रहे थे. अतूलने उस बॅगसे एक पैसोंका बंडल उठाया, अपने नाकके पास लिया और वह उस बंडलसे अपनी उंगली फेरते हूए उस नोटोंकी खुशबु लेने लगा.
'' देख तो कितनी अच्छी खुशबु आ रही है ... '' अतूलने कहा.
अलेक्सनेभी एक बंडल उठाकर उसकी खुशबु लेते हुए वह बोला,
'' और देखोतो अपने मेहनतके कमाईके पैसेकी खुशबु कुछ औरही आती है ... नही?''
दोनोंने हंसते हूए एक दुसरेकी जोरसे ताली ली.
'' इतने सारे पैसे वहभी एकसाथ... मै तो पहली बार देख रहा हूं '' अलेक्सने कहा.
दोनों उस बैगमें हाथ डालकर सारे बंडल्स उलट पुलटकर देखने लगे.
'' नोटोंके बंडल्स देखते हूए अलेक्स बिचमेही रुककर बोला, '' अब उस पंटरका क्या करना है ... उसे छोड देना है ? ''
'' छोड देना है ? ... कहीं तुम पागल तो नही हूए ? ... अरे अब तो शुरवात हूई है ... मुर्गीने अंडे देनेकी अबतो शुरवात हुई है '' अतूल बिभत्स हास्य धारण करते हूए बोला.
क्रमश: ..
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--- Johann Wolfgang von Goethe
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