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राजेश उसकी बीवी कमल और अपने कॉलेज के दोस्तों का गुट छोड़ कर जैसे ही प्रिया महिलाओं के गुट में जा मिली वैसे ही लॉन के प्रवेश द्वार से विजय भीतर आया . उसके साथ उसकी माँ और बहन थे. उसकी माँ एक बुज़ुर्ग औरत थी और बहन उससे उम्र में थोड़ी सी बड़ी लेकिन शर्मीले स्वभाव की अंतर्मुख महिला थी. अंदर आते ही विजय की नज़रें लॉन में चारो तरफ किसी को तलाशती घूमने लगी. राजेश ने जब विजय को अंदर आते और इधर उधर नज़रें घुमाते देखा तो उसने अंदाज़ा लगा लिया कि विजय की नज़रें किसे ढूँढ रहीं हैं. राजेश एक दोस्त को देख कर शरारत से मुस्कुराया. टोली में शामिल बाकी दोस्तों की नज़रें भी विजय की ओर गयी और वह भी यह जान कर मुसुकराए . हालाँकि इस सबसे अंजान अब भी विजय की नज़रें भीड़ में किसी को खोज रही थी , तभी एक दोस्त ने हाथ उपर करते हुए राजेश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और बोला,
"अरे इधर...यहाँ आओ भाई...हम लोग यहाँ हैं.."
टोली का एक दूसरा दोस्त ताना मारते हुए बोला, "और आप जनाब जिन्हें खोज रहे हैं वह दूल्हे राजा राजेश साहब आपकी राह देखते जानें कब से यहाँ हाथ जोड़े खड़े हैं" यह सुनते ही विजय की तलाशती नज़रें एकदम से थम गई , मानों उसकी चोरी पकड़ी गयी आख़िरकार लाचार हो वह अपनी माँ और बहन को ले कर राजेश की ओर बढ़ा.
"आओ भाई आओ . सौ साल उम्र है तुम्हारी...अभी तुम्हारा ही ज़िक्र हो रहा था" "विजय को आते देख एक दोस्त बोला.
"साले कभी तो मौका देख के चौका मारा करो" एक दोस्त ने इशारों इशारों में कहा "हद है यार आख़िर कब बाज़ आओगे अपनी आदतों से तुम?"
"क्यों भाई क्या हुआ?" विजय ने अंजान बनते जानना चाहा.
"अरे विजय , मेरे दोस्त !" राजेश खुशी से चहका हालाँकि उसने विजय की माँ और बहन की मौजूदगी में विजय के करीब जाकर उसके कानों में दबी आवाज़ के साथ कहा " हाल फिलहाल तक वह यहीं थी" और उसने प्रिया की तरफ इशारा किया . विजय ने जब देखा तो उसे वहाँ प्रिया खड़ी दिखाई दी और वह उसी को अपलक निहार रही थी , दोनो की नज़रें आपस में एकसाथ टकराई और दोनो ही मुस्कुरा उठे. लेकिन विजय को दोस्तों की टोली छोड़ कर उसकी ओर जाना ठीक न लगा वैसे भी वह महिलाओं के बीच खड़ी थी और शायद प्रिया को भी महिलों के गुट से निकल कर विजय को इस तरह मिलना नही जँचा .
"इनसे मिलो" राजेश ने विजय को अपनी पत्नी से मिलवाते कहा "यह हैं मेरे सबसे ख़ास दोस्त विजय "
"हां हां मुझे याद है हमारी शादी में भी आपने इनसे मिलवाया था..." राजेश की बीवी बोली "कैसे हैं विजय जी?"
"बस ठीक हूँ , मैं आपको अपनी माँ से मिलवाता हूँ ये मेरी माँ हैं ...और यह मेरी बहन शालिनी" विजय ने परिचय करवाया और गिफ्ट का डब्बा राजेश को पकड़ाते हुए कहा , राजेश ने वह गिफ्ट बॉक्स बगल में खड़े एक दोस्त के हवाले किया और उसने विजय की माँ के पैरों को छू कर प्रणाम किया , उसको ऐसा करते देख उसकी बीवी ने भी विजय की माँ के पैर छुए "आशीर्वाद दीजिए माँ जी"
"जीती रहो बहु" विजय की माँ ने उन दोनो के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए आशीर्वाद देते हुए कहा.
"पिताजी को नहीं लाए विजय?" उनकी टोली में शामिल एक दोस्त बोल पड़ा.
जैसे ही यह सवाल उस दोस्त ने किया वैसे ही रंग में मानो भंग पड़ गया. यकायक सब गंभीर हो गये क्योंकि तकरीबान सबको यह बात मालूम थी की विजय के पिता हमेशा शराब के नशे में धुत्त रहते हैं , उनकी इन्ही हरकतों से तंग आ कर विजय उनको ले कर कहीं न जाता था. उसकी बहन के शर्मीले स्वभाव की वजह से वह उसे भी अपने साथ कहीं नही ले जाता था. आज भी वह उसको लेकर इस जलसे में आया था तो केवल राजेश के प्रेम भरे अनुरोध की खातिर . यूँ भी उसको न ले जाने की और भी कई वजहें थी लेकिन वह यह बातें किसी के सामने जाहिर नही कर सकता था. कोई अनुरोध करता तो वह उसके स्वभाव का कारण बता कर बात को टाल देता . राजेश ने विजय से पिताजी को भी ले कर आने के लिए कहा था , राजेश ने खुद उसके पिताजी को भी शादी में बुलाया था लेकिन राजेश को भी यह बात मालूम थी की वे नही आएँगे , या शायद वह आना भी चाहें तो विजय उन्हें आने नहीं देगा. वहीं विजय ने सोचा कि पिताजी या बहन में से किसी एक को भी अगर वह अपने साथ ले जाएगा तो भी राजेश के बुलावे का मान रह जाएगा और वह खुश होगा. लिहाज़ा उसने अपनी बहन को साथ लाने का फ़ैसला किया. लेकिन उसे क्या पता था कि उसे इस तरह शर्मिंदा होना पड़ेगा. अपने दोस्त को उदास देख राजेश भी बेचैन हो उठा , उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने सबसे अच्छे दोस्त के चेहरे पर खुशी लाने के लिए माहौल को कैसे हल्का करे , उसे रह रह कर अपने दोस्त की हालत पर अफ़सोस हो रहा था और साथ ही साथ उस दोस्त पर गुस्सा भी- कि विजय के पिताजी के बारे में मालूमात होते हुए भला उसने यह यह बात क्यों छेड़ी ? या तो यह बात उसने अंजाने में ही कही थी या फिर उसने विजय को शर्मिंदा करने के लिए जानबूझ कर यह बात कही हो .
"माँ" बगल से अपनी माँ को जाते देख राजेश ने उन्हें आवाज़ लगाई "माँ यहाँ आओ...इनसे मिलो ये हैं विजय की माँ और यह है उसकी बहन शालिनी ..तुमने कहा था न तुम्हें इनसे मिलना था?" राजेश की माँ वहाँ आई और राजेश के सब यार-दोस्तों के अभिवादन स्वीकार करते हुए,सबसे हाथ जोड़ कर मिलते हुए,सबकी बधाइयाँ लेते हुए विजय की माँ और बहन को दूसरी ओर महिलाओं के गुट की तरफ ले गयीं. इसी गुट में प्रिया भी मौजूद थी , वह विजय की बहन को देख मुस्कुराई और.…उसने उसकी माँ को झुक कर उनके पैरों को छू कर प्रणाम किया .
Cond....
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राजेश उसकी बीवी कमल और अपने कॉलेज के दोस्तों का गुट छोड़ कर जैसे ही प्रिया महिलाओं के गुट में जा मिली वैसे ही लॉन के प्रवेश द्वार से विजय भीतर आया . उसके साथ उसकी माँ और बहन थे. उसकी माँ एक बुज़ुर्ग औरत थी और बहन उससे उम्र में थोड़ी सी बड़ी लेकिन शर्मीले स्वभाव की अंतर्मुख महिला थी. अंदर आते ही विजय की नज़रें लॉन में चारो तरफ किसी को तलाशती घूमने लगी. राजेश ने जब विजय को अंदर आते और इधर उधर नज़रें घुमाते देखा तो उसने अंदाज़ा लगा लिया कि विजय की नज़रें किसे ढूँढ रहीं हैं. राजेश एक दोस्त को देख कर शरारत से मुस्कुराया. टोली में शामिल बाकी दोस्तों की नज़रें भी विजय की ओर गयी और वह भी यह जान कर मुसुकराए . हालाँकि इस सबसे अंजान अब भी विजय की नज़रें भीड़ में किसी को खोज रही थी , तभी एक दोस्त ने हाथ उपर करते हुए राजेश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और बोला,
"अरे इधर...यहाँ आओ भाई...हम लोग यहाँ हैं.."
टोली का एक दूसरा दोस्त ताना मारते हुए बोला, "और आप जनाब जिन्हें खोज रहे हैं वह दूल्हे राजा राजेश साहब आपकी राह देखते जानें कब से यहाँ हाथ जोड़े खड़े हैं" यह सुनते ही विजय की तलाशती नज़रें एकदम से थम गई , मानों उसकी चोरी पकड़ी गयी आख़िरकार लाचार हो वह अपनी माँ और बहन को ले कर राजेश की ओर बढ़ा.
"आओ भाई आओ . सौ साल उम्र है तुम्हारी...अभी तुम्हारा ही ज़िक्र हो रहा था" "विजय को आते देख एक दोस्त बोला.
"साले कभी तो मौका देख के चौका मारा करो" एक दोस्त ने इशारों इशारों में कहा "हद है यार आख़िर कब बाज़ आओगे अपनी आदतों से तुम?"
"क्यों भाई क्या हुआ?" विजय ने अंजान बनते जानना चाहा.
"अरे विजय , मेरे दोस्त !" राजेश खुशी से चहका हालाँकि उसने विजय की माँ और बहन की मौजूदगी में विजय के करीब जाकर उसके कानों में दबी आवाज़ के साथ कहा " हाल फिलहाल तक वह यहीं थी" और उसने प्रिया की तरफ इशारा किया . विजय ने जब देखा तो उसे वहाँ प्रिया खड़ी दिखाई दी और वह उसी को अपलक निहार रही थी , दोनो की नज़रें आपस में एकसाथ टकराई और दोनो ही मुस्कुरा उठे. लेकिन विजय को दोस्तों की टोली छोड़ कर उसकी ओर जाना ठीक न लगा वैसे भी वह महिलाओं के बीच खड़ी थी और शायद प्रिया को भी महिलों के गुट से निकल कर विजय को इस तरह मिलना नही जँचा .
"इनसे मिलो" राजेश ने विजय को अपनी पत्नी से मिलवाते कहा "यह हैं मेरे सबसे ख़ास दोस्त विजय "
"हां हां मुझे याद है हमारी शादी में भी आपने इनसे मिलवाया था..." राजेश की बीवी बोली "कैसे हैं विजय जी?"
"बस ठीक हूँ , मैं आपको अपनी माँ से मिलवाता हूँ ये मेरी माँ हैं ...और यह मेरी बहन शालिनी" विजय ने परिचय करवाया और गिफ्ट का डब्बा राजेश को पकड़ाते हुए कहा , राजेश ने वह गिफ्ट बॉक्स बगल में खड़े एक दोस्त के हवाले किया और उसने विजय की माँ के पैरों को छू कर प्रणाम किया , उसको ऐसा करते देख उसकी बीवी ने भी विजय की माँ के पैर छुए "आशीर्वाद दीजिए माँ जी"
"जीती रहो बहु" विजय की माँ ने उन दोनो के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए आशीर्वाद देते हुए कहा.
"पिताजी को नहीं लाए विजय?" उनकी टोली में शामिल एक दोस्त बोल पड़ा.
जैसे ही यह सवाल उस दोस्त ने किया वैसे ही रंग में मानो भंग पड़ गया. यकायक सब गंभीर हो गये क्योंकि तकरीबान सबको यह बात मालूम थी की विजय के पिता हमेशा शराब के नशे में धुत्त रहते हैं , उनकी इन्ही हरकतों से तंग आ कर विजय उनको ले कर कहीं न जाता था. उसकी बहन के शर्मीले स्वभाव की वजह से वह उसे भी अपने साथ कहीं नही ले जाता था. आज भी वह उसको लेकर इस जलसे में आया था तो केवल राजेश के प्रेम भरे अनुरोध की खातिर . यूँ भी उसको न ले जाने की और भी कई वजहें थी लेकिन वह यह बातें किसी के सामने जाहिर नही कर सकता था. कोई अनुरोध करता तो वह उसके स्वभाव का कारण बता कर बात को टाल देता . राजेश ने विजय से पिताजी को भी ले कर आने के लिए कहा था , राजेश ने खुद उसके पिताजी को भी शादी में बुलाया था लेकिन राजेश को भी यह बात मालूम थी की वे नही आएँगे , या शायद वह आना भी चाहें तो विजय उन्हें आने नहीं देगा. वहीं विजय ने सोचा कि पिताजी या बहन में से किसी एक को भी अगर वह अपने साथ ले जाएगा तो भी राजेश के बुलावे का मान रह जाएगा और वह खुश होगा. लिहाज़ा उसने अपनी बहन को साथ लाने का फ़ैसला किया. लेकिन उसे क्या पता था कि उसे इस तरह शर्मिंदा होना पड़ेगा. अपने दोस्त को उदास देख राजेश भी बेचैन हो उठा , उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने सबसे अच्छे दोस्त के चेहरे पर खुशी लाने के लिए माहौल को कैसे हल्का करे , उसे रह रह कर अपने दोस्त की हालत पर अफ़सोस हो रहा था और साथ ही साथ उस दोस्त पर गुस्सा भी- कि विजय के पिताजी के बारे में मालूमात होते हुए भला उसने यह यह बात क्यों छेड़ी ? या तो यह बात उसने अंजाने में ही कही थी या फिर उसने विजय को शर्मिंदा करने के लिए जानबूझ कर यह बात कही हो .
"माँ" बगल से अपनी माँ को जाते देख राजेश ने उन्हें आवाज़ लगाई "माँ यहाँ आओ...इनसे मिलो ये हैं विजय की माँ और यह है उसकी बहन शालिनी ..तुमने कहा था न तुम्हें इनसे मिलना था?" राजेश की माँ वहाँ आई और राजेश के सब यार-दोस्तों के अभिवादन स्वीकार करते हुए,सबसे हाथ जोड़ कर मिलते हुए,सबकी बधाइयाँ लेते हुए विजय की माँ और बहन को दूसरी ओर महिलाओं के गुट की तरफ ले गयीं. इसी गुट में प्रिया भी मौजूद थी , वह विजय की बहन को देख मुस्कुराई और.…उसने उसकी माँ को झुक कर उनके पैरों को छू कर प्रणाम किया .
Cond....
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