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Hindi sahitya - Novel - Madhurani CH-12 नजरोंके तिर

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Hindi sahitya - Novel - Madhurani CH-12 नजरोंके तिर

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Some people like my advice so much that they frame it upon the wall instead of using it.
-Jordon R. Dickson


सुबह काफी देरसे गणेश निंदसे जागा. आज गणेशको यहां आकर पुरे दो दिन हो गए थे. उसने आंखे मिचकाकर देखा तो सुरज की किरणे खिडकीसे कमरेके अंदर झांक रही थी. बाहरभी लोगोंकी आवाजें आ रही थी. देर राततक गणेश सो नही पाया था. कल रातभी यही हाल था. रातमें रह रहकर मधूराणीकी उसके दिलको आरपार करने वाली नजरें उसे सो नही दे रही थी. वह एकदमसे उठ खडा हुवा और जल्दी जल्दी खिडकीके पास चला गया. खिडकीसे दुकानपर बैठे मधुराणीकी एक झलक दिखनेके बाद कहा उसके दिलने सुकुन महसुस किया. उसका इधर ध्यान नही था. वह अपने काममें मग्न थी .

ये मुझे क्या हो रहा है ?.... गणेश सोचने लगा.

पहले कभी मुझे ऐसा नही हुवा था ....

किसी स्त्री का इतना आकर्षन !...

ये कुछ ठिक नही ...

शायद अपनी बिवीके विरहके कारण यह होता होगा ....

लेकिन क्या इसे विरह कहा जा सकता है ?...

मुझे यहां आकर मुश्कीलसे दो या तिन दिन तो हूए है ....

हो सकता है.... अपनोकी कमी उनसे जुदा होनेपरही महसूस होती है....

वह धीरे धीरे कदम बढाते हूए हूए अपने बॅगके  पास जाने लगा. लेकिन उसका मन खिडकीसे हटनेको तैयार नही था. भारी कदमोंसे वह बडी मुष्कीलसे अपने बॅगके पास चला गया. बॅग खोली. बॅगसे उपरका सामान उठाकर बॅगके सबसे निचे हाथ डालकर उसने अपना, बिवीका और उसके लडकेका फॅमीली फोटो  बाहर निकाला. फिर न जाने कितनी देर तक वह उस फोटोको बडी प्यारसे निहारता रहा .

इतनी प्यारीसी बिवी होनेके बाद मेरा मन ऐसे विचलित क्यो होता है ?...

नही. मुझे मेरे मनपर काबू रखना जरुरी है ....

उसने अपना इरादा पक्का किया.

गणेश नहा रहा था. अपने मन का इरादा और निर्धार पक्का करनेके बाद उसे अब अच्छा लगने लगा था. लेकिन यह इरादा टिकना चाहिए. नहाते वक्त उसके दिमागमें एक तरकिब आ गई .

ये सारा जादू मधुराणीके आखोंका और उसकी दिलको भेदनेवाली नजरोंका है ....

अगर मैने उसकी नजरोसे नजर मिलाना टाला तो कैसा रहेगा?...

तो शायद मेरा इरादा टिकना मुमकिन है ...

मुमकिन नही ... मुझे मेरा इरादा टिकानाही पडेगा...

इतनी देर तक हौले हौले नहा रहे गणेशको अब जल्दी हो गई थी. अभी नहाना धोना निपटाकर मै उसकी दुकानमें जाता हूं. यूंभी उसे घरमे लगनेवाली कुछ महत्वपुर्ण चिजे खरीदनी थी. उसने तय किया की अब उसके दुकानमें जाना है. कुछ सामान खरेदी करेंगे. वह अगर बोली तो --- उसे बात भी करुंगा. लेकिन कुछ भी हो उसकी आखोंसे आंखे नही मिलाऊंगा.

तो होगया तय ....

नहाना धोना निपटाकर गणेशने झटसे कपडे पहन लिए. दिवारपर टंगा थैला निकाला और जल्दी जल्दी निकल गया - मधुराणीके दुकानपर. जाते हूए उसके मन में एक विचार आया.

यह कैसी जल्दी ...

यह कैसी तडप !...

उसकी तरफ देखनेकी भी तडप और अब उसके नजरोंको टालनेकीभी तडप ....

सबकुछ कैसे अजिब ही लग रहा था. 

खाली थैला एक हाथमें लेकर गणेश उसकी नजरोंकों प्रयत्नपुर्वक टालते हूए उसके गल्लेके सामने खडा हो गया. उसने उसके हाथमें थमा थैला नौकरके हवाले कर दीया.

" बोलो साबजी  ... क्या मांगता है  " मधुराणी गणेशके आंखोमें आखे डालकर बोली.

गणेश उसकी गहरी नजरोंसे बचते हूए उसकी सरसे उपर पिछे देखते हूए बोला, " यह लीस्ट  है "

उसने चिजोंकी लीस्ट मधुराणीके हाथमें दी.

" साबजी  .. हमरे दुकानमा  लिस्टवा  लेकर आनेवाले आप पहलेही गिराइक  होंगे जी  " उसने लिस्ट हाथमें लेकर उलट पुलटकर देखते हूए कहा.

फिर लिस्ट उसे वापस करते उसने कहा, '' तो फिर आपही पढोनाजी  जोरसे... मैने पढा क्या या  आपने पढा एकही बात हुई  गवा "


वह कागज वापस लेकर पढने लगा .

" लक्स  एक .. रिन  एक... चहापत्ती सव्वाशे ग्रॅमका एक पॅक .. शक्कर एक किलो ...अगरबत्ती एक पॅक ... अच्छा दो जरा ... सुगंधीत ... "

नौकर जल्दी जल्दी सामान निकालने लगा.

"  थोडा  धीमे जी  .... उसे सामान तो निकालवा देइयो .. नाही तो  गडबड हो जावेगी …  उस दिन की तरहा  .."
मधुराणी मधूर सी हंसते हूए बोली. उसके मोतीजैसे सफेद दांतकी तरफ देखकर वहभी हंस दिया. लेकिन वह उसकी नजरोंसे प्रयत्नपुर्वक बचता रहा.

नौकरने सारा सामान थैलेमें भरकर थैला गणेशके हाथमें थमा दीया. तभी वहा सदा आगया. गणेशने सदाकी तरफ देखकर देखा अनदेखा कर दिया. परसोंकी गालीयां वह अबभी भूला नही पाया था. सदा खुद होकर गणेशके पास गया.

" नमस्कार साबजी  " सदाने उसे अदबके साथ अभिनंदन किया. गणेशने सदाकी तरफ ध्यान नही दिया. सदाका उस रातका रुप और अभिका रुप इसमें जमिन अस्मानका अंतर था. इसलिए सदाके साथ किस तरहसे पेश आया जाए गणेशको कुछ समझ नही रहा था. 

गणेश अपना सामानका थैला लेकर जाने लगा.

" लावोजी  इधर देइयो ... मै लेता हूं थैला '' सदा गणेशके हाथसे थैला लेते हूए बोला.

'' नही ... रहने दो'' लगभग उसके हाथसे थैला छिनकर लेते हूए गणेश बोला.

मधुराणी खिलखिलाकर हंस पडी. गणेश जैसे अपने कमरेकी तरफ जाने लगा वैसे मधुराणी बोली -

" फिर्फीरर्फ कर्फबर्फ आर्फावोर्फोगेर्फ़े "

" क्या ... क्या कहा ?" गणेश पलटकर लेकिन उसके नजरोंको टालते हूए बोला.

" कुछ नाही  .... लगता है हमरी बोली आपकोभी पढवानी पडेगी   ... " मधुराणी मटककर बोली.

गणेशको उसके इस मटकनेसे उसकी आखोंमे देखनेका पलभरके लिए क्यों ना हो प्रलोभन हुवा.

पर नही ...

नजरोंके तिर निष्प्रभ हूए देखकर शत्रूपक्षने यह दुसरा हथियार इस्तमाल करनेकी सोची है ... शायद...

गणेश बडी मुश्कीलसे अपने आपपर काबू पाकर, सदाको टालते हूए अपने कमरेकी तरफ चल दिया.
रसद से भरा हूवा थैला लेकर कमरेमें प्रवेश करनेके बाद प्रथम गणेशने सामनेका दरवाजा बंद कर दिया. खिडकीसे उसने झांककर बाहर देखा. सदा चला गया था. उसने राहत की सांस ली. फिर उसका ध्यान मधुराणीकी तरफ गया. मधुराणी अपने काममें व्यस्त दुकानके गल्लेपर बैठी थी. गणेशने खिडकीसे हटकर थैला एक कोनेमें रख दिया; शर्टके उपरी जेबसे सिगारेटका  पाकिट निकाला. उसमेंसे एक सिगारेट निकालकर उसने वह माचिससे सुलगाई. वह अब सिगारेटके लंबे लंबे कश भरने लगा. वह इस बातसे खुश था की उसने दुकानमें मधुराणीकी आंखोमें आखे डालकर एक बारभी नही देखा था. उसके दिलमें उठी कसकभी अब उसे थमी थमीसी और ठंडी पडी महसुस हो रही थी. उसे उसकी नजरोंके सारे तिर निष्प्रभ करनेका विजयी आनंद हो रहा था.

क्रमश: ...

Some people like my advice so much that they frame it upon the wall instead of using it.
-Jordon R. Dickson

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