Hindi books - Novels- Madhurani - CH-11 कनेक्सन ( connection )
Read some selected Feedbacks - प्रतिक्रिया
You must be the change you wish to see in the world.
-Gandhi
एक कोनेमें खडे होकर गणेश सिगारेट के दिर्घ कश मारने लगा. तब कहा उसके जी को सुकुन महसुस हो रहा था. उसके बगलमेंही एक जवान लडकोंका समुह सिगारेट पीनेमें लगा हुवा था. अंधेरेका फायदा उठाकर वे किसी भूखे भेडीएकी तरह मधुराणीके दुकानकी तरफ देख रहे थे. लेकिन गणेश उनके बगलमेंही कोनेमें खडा होनेसे उसे सब दिखाई दे रहा था.
" ए राम्या जरा कनेक्सन देरे..." उनमेंसे एक अपने मुंहमें सिगारेट पकडकर उसे जलानेके लिए दुसरेसे बोला.
दुसरेने अपने मुंहमेंसे जलती सिगारेट उसके हाथमें थमा दी. उसने वह जलती हुई सिगारेट अपने मुंहमें पकडे सिगारेटके सिरेसे लगाकर दो चार जोरसे कश लगाकर सुलगाई और अपने दोस्त की जलती सिगारेट उसे वापस कर दी.' कनेक्सन' का मतलब समझकर गणेश मन ही मन मुस्कुराया. लंबे लंबे गहरे कश मारनेसे गणेशकी सिगारेट जल्दीही खतम हूई. उसने जेबसे दुसरी सिगारेट निकालकर उसे पहली की सहाय्यतासे सुलगाया -- मतलब उन देहाती लडकोंके अनुसार 'कनेक्शन' दिया. फिरसे वह मुस्कुराया. तभी गणेशको किसीका जोरजोरसे चिल्लानेका या फिर झगडने का आवाज आया.
" उस ग्रामसेवक के माका ---- ... "
" मादर...द साला "
गणेशके नामका कोईतो उध्दार कर रहा था. उसकीतो दिलकी धडकनही तेज हो गई. पहले दिनही उसे कोई गालीयां दे रहा है यह सुनकर वह विचलीत हो गया. शायद पहले वाले ग्रामसेवकको कोई गालीयां दे रहा होगा. उसने सोचा और जिस दिशासें वह आवाजे आ रही थी उस दिशामें देखने लगा.
पहलेके ग्रामसेवककोही जो भी है वह गालीयां दे रहा होगा...
वैसेभी पहलेके ग्रामसेवकाका और गांव के लोगोकां कुछ खास नही जमता था - जो उसे आजही पहलेके ग्रामसेवकसे पता चला था. ...
उधर सामने गहरा अंधेरा था. शायद सामने उस गलीके आगे, सरपंचके घरके पास कोई तो झगड रहा होगा.
" सालेका हुयी गवा शुरु ... रामायण... " बगलमें खडे लडकोंके समुहसे कोई बोला.
मतलब पहलेके ग्रामसेवक के बारेमें अबभी भला बुरा कहा जा रहा था... गणेशने सोचा.
चलो .... वहां जाकरतो देखते है... क्या झमेला है? ....
वह जिधरसे गालीयोंका आवाज आ रहा था उस दिशामें चलने लगा. गणेशने देखा की एक आदमी अंधेरेमें खडे होकर ग्रामसेवकको गालीयां दे रहा है. उसने जरा नजदिक जाकर देखा तो वह तो हक्का बक्का और दंग रह गया. क्यों की. वह सदा था. सुबह उसका सामान उठाकर उसे सरपंचके घर ले जानेवाला सदा! उसे तो अबभी अपने आखोंपर विश्वासही नही हो रहा था. उसके बोलनेके ढंगसे और हावभावसे यह स्पष्ट था की वह पीकर टून्न हो गया था. गणेश उसे दिखते ही उसने अपना रुख गणेशकी तरफ मोड लिया.
" ई देखो... ई ग्रामसेवक ... खुदको कोई लाटसहाब समझता है.... ... इसकी तो मांका --- .... एस्टी स्टँडसे मुझसे सामान उठवाया ... मादर ..द साला. "
सिधे सिधे गणेशपरही गालीयोंकी बरसात होते देखकर पहलेतो वह उलझन में पड गडबडा गया. उसे इस स्थितीसे कैसे निपटा जाए कुछ समझ नही आ रहा था. सदाका उसपर गालीयोंका हमला जारी था.
नही अब बहुत हो चुका....गणेश का गुस्सा अब सातवे आसमानपर चढने लगा था. सदाके गालीयोंकी तीव्रताही इतनी थी की कोईभी भडक जाए. गुस्सेसे बेकाबु होकर गणेश अब सदाकी तरफ चलने लगा. अब उसे उसके कानके निचे लगानेकी जल्दी हो गई थी. चलते हुए गुस्सेसे उसका पुरा बदन गरम होगया था. उसका चेहरा लाल लाल होगया था. होठ थरथरा रहे थे. हाथ पैर भी कांप रहे थे. अब वह सदाके एकदम सामने जाकर खडा हो गया था. फिरभी सदाके बर्तावमे कुछ तबदीली नही आई. उसका जोर जोरसे गालीयां देना जारी ही था. गणेशने अब अपने मन को कठोर कर ठान लिया की, जो होगा देखा जाएगा, लेकिन इस आदमीको मै अब बहुत धोऊंगा. उसने अपना दाया हाथ उठा लिया और वह अब जोरसे सदाके गालपर तमाचा दे इसके पहलेही पिछेसे उसके कंधेपर किसीने हाथ रख दिया. उसने पलटकर देखा. वह सरपंचजी थे.
" गणेशराव ... थोडा इधर बगल में आइयो "
सरपंचजी गणेशके कंधेपर हाथ रखकर उसे एक तरफ ले गए.
" अरे गणेशराव... सुबे इसने आपको मेरे घर लाया ... तभी मुझे वह बात खटक गई रही ... "
" क्यों क्या हुवा ? " गणेशने असमंजसमें पुछा.
" ये सद्या एकबार इसने पी ली तो इका अपने उपर कोई काबु ना रहे है ... फिर उसे कुछ समझता नाही ... फिर दिनमें जिसे जिसे मिला उन सबको यह रंडवा गालीयां बके है... "
" बडी अजिब केस दिखती है ... " गणेश अपने माथेपर आया पसिना पोछते हूए बोला. " इसका कुछ बंदोबस्त क्यो नही लगाते हो आप लोग ... " वह आगे गुस्सेसे बोला.
" ई क्या कहते हो गणेशराव... सुबे तो बोल रहे थे बहुत सज्जन आदमी है " सरपंच उसे छेडते हुए बोले.
" हां कहा तो था... लेकिन इतनाभी सज्जन होगा ऐसा कभी सोचा नही था. " गणेश जबरदस्ती हंसनेकी चेष्टा करते हूए बोला.
क्रमश:...
You must be the change you wish to see in the world.
-Gandhi
No comments:
Post a Comment