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Ch-1:हैप्पी गो अनलकी (शून्य-उपन्यास)

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Hindi Suspense thriller Novel



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हिमालय की वह उंचे पर्वतोंकी श्रुंखला और पर्वतोंपर लहराते हूए, आसमानमें बादलोंसे बातें करते हूए उंचे पेढ. आगे बर्फ से ढंकी हूई पर्वतोंकी ढलान चमक रही थी. उस चमकती ढलानसे लगकर कहीं दूरसे किसी सांप की तरह बल खाती हूई एक नदी गुजर रही थी. शुभ्र और अमृत की तरह निर्मल उस नदीका पाणी बहते हूए आसमंतमें जैसे एक मधूर धुन बिखेरता हूवा जा रहा था.

उंचे उंचे पेढ की सरसराहट , पंछींयोंकी चहचहाट, बहते नदी की मधूर धुन. इन कुदरती बातोंसे कौनसा युग चल रहा होगा यह बताना लगभग नामुमकीन. हजारो, लाखो सालोंसे चल रहे इन कुदरती करिश्मों में अगर मानवी उत्थान का प्रतीक समझे जाने वाली बातोंकी उपस्थीती ना हो तो पुराना युग क्या? और आधुनिक युग क्या? ... दोनो एक समान. ऐसी इस जगह पर्वत की गोदमें नदीके किनारे एक पुरानी गुंफा थी. उस गुंफा के आस पास उंची हरी हरी घास हवा के साथ लहरा रही थी. गुंफामे एक ऋषी ध्यानस्थ बैठा हूवा था. सरपर बढी हूई जटायें, दाढी मुंछ बढ बढकर थकी हूई. न जाने कितने सालसे तप कर रहे ऋषी के चेहरेपर एक तेज, एक गांभीर्य झलक रहा था. आसपासके वातावरण से अनजान , या यूं कहीए वक्त, जगह और अपने शरीर से अनजान उनकी सुक्ष्म अस्तीत्वका विचर युगो युगोतक चल रहा होगा. अनादि, अनंत, सनातन कालसे विचर करते हूए उस ऋषीकी सुक्ष्म अहसास ने इस आधुनिक युग में प्रवेश किया ...

अमेरिकाके एक शहरमें एक रस्ते के फुटपाथपर शामके समय लोग अपनी आधूनिकता की शानमें अपने ही धुनमें चले जा रहे थे. रस्तेपर आलिशान गाडीयाँ दौड रही थी. लोग अपने आपमे ही इतने व्यस्त और मशगुल थे की उन्हे दुसरों की तरफ ध्यान देने की बिलकुल फुरसत नही थी. सब कैसे अनुशाशीत ढंग से एक स्वयंचलित यंत्र की तरह चल रहा था. चलते हूए सबकी नजर कैसी अपनी नाक की दिशा में सिधी थी. हो सकता है उन्हे इधर उधर देखते हूए चलना भी अपने शिष्टाचार के खिलाफ लगता होगा. ऐसेही लोगोंकी भिडमें चलती हूई एक बाईस तेईस साल की सुंदरी अँजेनी अपने हाथमें शॉपींग बॅग लिये एक दुकान मे जानेके लिये मुडी. चलते हूए एक हाथसे बडी खुबसुरतीसे वह बिच बिचमें अपने चेहरे पर आती लटोंको पिछे की ओर हटा रही थी. उसकी लबालब भरे शॉपिंग बॅगसे लग रहा था की उसकी खरीदारी लगभग पुरी हो गयी होगी, बस कुछ दो-एक चिजें रह गई होगी. अचानक एक पुलिस व्हन सायरन बजाती हूई रास्ते से गुजरने लगी. लोगोंका अनुशाशन जैसे भंग हो गया. अँजेनी दुकानमें जाते हूए रुक गई और मुडकर क्या हूवा यह देखने लगी. कोई चलते चलते रुककर, तो कोई चलते चलते मुडकर क्या हूवा यह देखने लगे. न जाने कितने दिनोंके बाद कुछ लोगोंके भावहिन चेहरे पर डर के भाव उमटने लगे थे. कुछ लोग तो चेहरे पर बिना कुछ भाव लाए उस व्हन की तरफ देखने लगे. शायद चेहरेपर कुछ भाव जताना भी उनको नागवार लगता होगा. पुलिस व्हन आई उसी गतीमें गुजर गई. रस्ता थोडी देर तक जैसे पाणी में पत्थर गिरने से निकलने वाले तरंग की तरह विचलित हूवा और फिर थोडी देरमें पुर्ववत हुवा. जैसे कुछ हूवा ही ना हो. अँजेनी फिरसे मुडकर दुकानमें जाने लगी. उसे क्या मालूम था? की अभी अभी जो व्हॅन रस्ते से गुजर गई उसका उसके जिंदगी से भी कुछ सरोकार होगा.

पुलिस व्हॅन एक साफ सुधरी कोलोनीमें एक अपार्टमेंट के निचे रुक गई. बस्तीमें एक अजीब सन्नाटा छाया हूवा था. पुलिस व्हॅनसे तप्तरताके साथ पुलिस ऑफीसर जॉन और उसकी टीम उतर गई. जो लोग अपार्टमेंटके बाल्कनीमें बैठकर सुस्ता रहे थे वह अचंभेसे निचे पुलिस व्हॅनकी तरफ देखने लगे. उतरते ही जॉन और उसकी टीम अपार्टमेंट की लिफ्ट की तरफ दौड गई. ड्रायव्हरने व्हॅन अंदर ले जाकर पार्किंग लॉटमें पार्क की. जॉन और उसके सहकारीयोंने लिफ्टके पास आकर देखा तो लिफ्ट जगह पर नही थी. जॉनने लिफ्टका बटन दबाया. बहुत देर से राह देखकरभी लिफ्ट निचे नही आ रही थी.
" शिट" चिढे हूए जॉनके मुंह से निकल गया.
अधिरतासे जॉन बार बार लिफ्टका बटन दबाने लगा. थोडी देरमें लिफ्ट निचे आ गई. जॉनने लिफ्टका बटन फिरसे दबाया. लिफ्टका दरवाजा खुल गया. अंदर काला टी शर्ट पहना हूवा एकही आदमी था. उस हालातमें भी उसके टी शर्टपर लिखे अक्षरोंने जॉन का ध्यान आकर्षित किया. उस काले टी शर्टपर सफेद अक्षरोंसे लिखा हुवा था -
' झीरो'.
वह आदमी बाहर आतेही जॉन और उसके साथीदार लिफ्टमें घुस गए. लिफ्टमें जातेही जॉनने 10 नं. फ्लोअरका बटन दबाया. लिफ्ट बंद होकर उपरकी तरफ दौडने लगी.

10 नं. फ्लोअरपर लिफ्ट रुक गई. जॉनके साथ सब लोग बाहर आ गए. उन्होने देखा की उनके सामने ही एक फ्लॅटका दरवाजा पुरा खुला हूवा था. सब लोग उस खुले फ्लॅटकी तरफ दौड पडे. वे सब लोग एक दुसरे को कव्हर करते हूए धीरे धीरे फ्लॅटके अंदर जाने लगे. हॉलमें कोई नही था. जॉन और उसके और दो साथीदार बेडरुमकी तरफ जाने लगे. बचे हूए कुछ किचनमें, स्टडी रुममें और बाकी कमरे देखने लगे. किचन और स्टडी रुम खालीही थी. जॉनको बेडरूममें जाते वक्त ही अंदर सब सामान बिखरा हूवा दीख गया. उसने अपने साथीदारको इशारा किया. जॉन और उसके दो साथीदार सतर्तकासे धीरे धीरे बेडरुममें जाने लगे. वे एक दुसरेको कव्हर करते हूए अंदर जातेही उनको सामने बेडरुममे एक भयानक दृष्य दिखाई दिया. एक खुन से लथपथ आदमी बेडपर लिटा हूवा था. उसके शरीर में कुछ हरकत नही दिख रही थी. या तो वह मर गया था या फिर बेहोश हो गया होगा. जॉनने सामने जाकर उसकी नब्ज टटोली. वह तो कबका मर चुका था.
'' इधर है ... इधर''
जॉनके साथ आया एक साथीदार चिल्लाया.
अब जॉनके पिछे उसके बाकी साथीदार भी अंदर आगए. जॉनने आजुबाजू अपनी मुआयना करती हूई नजर दौडाई. अचानक उसका ध्यान जिस दिवार को बेड सटकर लगा हूवा था उस दिवार ने आकर्षीत किया. दिवार पर खुन की छींटे उड गई थी या खुन से कुछ लिखा हूवा था. जॉनने गौर करकर देखा तो वह खुनसे कुछ लिखा हूवाही प्रतित हो रहा था क्योकी दिवारपर खुनसे एक गोल निकाला हूवा था.
गोल... गोल का क्या मतलब होगा...
जॉन सोचने लगा.
और वह खुन उस मरे हूए आदमी का है या और किसीका?...
वह गोल खुनी ने निकाला होगा या फिर जो मर गया उसने मरनेसे पहले वह निकाला होगा?
'' यू पिपल कॅरी ऑन ''
जॉनने अपने टीमको उनकी इन्वेस्टीगेशन प्रोसीजर शुरु करने को कहा.
उसके साथीदार अपने अपने काममें व्यस्त हो गए. जॉनने अपनी पैनी नजर एकबार फिरसे बेडरुमकी सब चिजे निहारते हूए दौडाई. बेडरुममें कोनेमें एक टेबल रखा हूवा था. टेबलपर एक तस्वीर थी. तस्वीरके बाजुमें कुछ खत और लिफाफ़े पडे हूए थे. जॉन ने एक लिफाफ़ा उठाया. उसपर लिखा हूवा था-
''प्रति - सानी कार्टर'.
इसका मतलब जो मर गया था उसका नाम सानी कार्टर था और वह सब खत उसे पोस्टसे आये हूए थे. जॉन बाकी लिफाफ़े और खत उठाकर देखने लगा. वे खत छानते हूए जॉन खिडकीके पास गया. उसने खिडकीसे बाहर झांककर देखा. बाहर बडा खुबसुरत दृष्य था - एक गोल नयनरम्य तालाब का. उस तालाब को हरी हरी हरीयालीने घेर रखा था. वह दृष्य देखकर जॉन कुछ पलोंके लिये अपने आसपासके मौहोल को भूल सा गया. तालाब की तरफ देखते देखते तालाब के आकारने उसे अपने आसपासके मौहोलसे फिरसे जोड दिया. क्योंकी तालाब का आकार लगभग गोलही था. जॉन फिरसे सोचने लगा-
'' दिवारपर... गोलसा क्या निकाला होगा?''
अचानक जॉनके दिमाग मे एक विचार चौंध गया..
'' गोल यानी 'झीरो' तो नही होगा... हां गोल यानी जरुर 'झीरो' ही होगा''
जॉन ने आवाज दिया '' सॅम और तू डॅन "'
" यस सर" सॅम और डॅन तत्परतासे आगे आते हूए बोले.
'' हम जब निचे लिफ्टमें चढे... तब हमें एक काले टी शर्टवाला आदमी दिखाई दिया...और उसके टी शर्टपर ''झीरो'' ऐसा लिखा हूवा था... तुमने देखाना?'' जॉनने पुछा.
'' हां सर...मुझे उसका चेहरा भी याद है'' सॅमने कहा.
'' हां सर...मुझेभी याद है'' डॅन ने कहा.
'' गुड ... अब तेजीसे निचे जावो और देखो वह निचे मिलता है क्या? ... जल्दी जावो ... वह अबभी जादा दुरतक नही गया होगा.''
जॉनके साथीदार सॅम और डॅन लगभग दौडते हूए ही निकल गए.

...contd..

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14 comments:

  1. स्वागत् है आपका.

    आरंभिक पाठ तो चेइज़ की लेखनी शैली जैसी कसावट का आनंद दे रही है.

    ये बताएँ कि क्या इसे लिख रहे हैं या लिखा जा चुका को प्रकाशित कर रहे हैं...

    अगर लिखा जा चुका है तो इसे नित्य भी प्रकाशित कर सकते हैं.

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  2. बहुत सारे ब्लॉगर हिंदी के नाम पर और खासकर साहित्य के नाम पर मनमौजी पर उतर आये हैं , आपका काम उनके बनिस्पत दिखने लगेगा । बधाई । किताबों को ब्लॉग पर ऑनलाइन किया जाने इंटरनेट का एक सही उपयोग साबित हो रहा है । लगे रहिए ।

    जयप्रकाश मानस
    www.srijangatha.com

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  3. वाह!
    बहुत बहुत स्वागत है।

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  4. रविजी , जयप्रकाशजी , और अनुवाद सिंहजी धन्यवाद आपने जो मेरे ब्लोग के बारेमे अपनी उत्साहवर्द्धक तिपनियाँ लिखी। रविजी यह उपन्यास पहलेसेही लिखा एवं पब्लिश किया जा चूका है । लेकिन चूँकि वह मराठी भाषामें लिखा गया है मुजे उसे हिन्दी में अनुवादित करनेमें थोडा वक्त लगता हैं । इसलिए मै उसे रोज पोस्ट कर नही पाउँगा। और मै उसे अब अंग्रेजी में भी पोस्ट करनेकी सोच रह हूँ। लेकिन सब एकबार स्थिर होने के बाद मै ब्लोग पोस्टिंग का समय धिरेधिरे कम करूँगा ।
    पुनः आप सबका शुक्रिया एवं धन्यवाद

    सुनील

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  5. अति सुन्दर प्रयास...बधाई.

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  6. good start and thanks.

    i read "Adbhut". it was also quite good.

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  7. अति सुन्दर प्रयास...बधाई

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  8. nice, and it is a good start. i hope this will go a quite well. i have read "black whole" and "adbhut" too they are quite awesome.

    Keep it up. and join the SHAHID SPACE

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  9. aapka kaam bahut sudnar hai,hindi ko aap jaise logo ki wajah se hi badawa mil raha hai,lage rahiye,bhagwan aapka bhala kare

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  10. VERY GOOD
    AFTER MORE TIME I GOT SOMETHING READABLE

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  11. nice work. i request that you ppl please include hindi suspence , detective & adventure novels . translated from english to hindi novels will also be greatly appriciated . i hope you pple won't dissappoint me .thanx .keep it .

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  12. आपके ब्लॉग पर में अभी तक तीन उपन्यास पड़ चूका हु ,सुनील डाई फोड़े कमाल के उपन्यासकार है क्या ये भी उन्ही का है ,या आप ही वो सुनील है

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