अन्य जगहों पर चाहे हालत बेकाबू हो गये हों लेकिन गणेश बाबू और उनके साथी पूरी ताक़त से लोगों को मंच की ओर जाने से रोके हुए थे. उनकी लाठीधारियों के साथ मुठभेड़ अब भी जारी थी. रह रह कर गणेश बाबू का ध्यान उस दिशा में चला जाता जहाँ उन्होने उन तीनों को मधुकर बाबू का गेम बजाने भेजा था. वैसे उन पर उनका पूरा भरोसा था लेकिन काफ़ी देर होने पर भी जब वे न लौटे तो उन्हें चिंता हुई.
इतने में वह तीनो गणेश बाबू को अपनी ओर आते हुए दिखाई दिए ...तीनों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी...
यानी उन्होने सौंपा गया काम कर दिया... उन्होने सोचा.
अब उनके चेहरे पर भी मुस्कुराहट तैरने लगी . वे अब उनके मुँह से खुशख़बरी सुनना चाह रहे थे . इस दौरान वे तीनों उनके पीछे आ कर खड़े हो गये. वे पलटकर उनसे मुखातिब होने ही वाले थे की उन पर किसी ने पीछे से लाठी चलाई और वह लड़खड़ा कर नीचे गिर पड़े.
उन्होने पलटकर देखा तो उन तीनो में से ही एक बंदे ने पीछे से उनके सिर पर लाठी चलाई थी. उन्हें आश्चर्य हुवा था. वे थोडा सम्हलने को हुए थे की इतने में दूसरा ज़ोरदार वार उनके माथे पर हुआ ..इस बार यह वार उनके विश्वासपात्र राजू ने किया था.
.... अब तक गणेश बाबू को समझ आ गया कि उनके साथ धोखा हुआ है.
लेकिन क्यों? और कैसे?...
इसके बाद उनके शरीर पर लाठियों के अनगिनत वार किए गये . हमलावर वही तीन थे. उन तीनो ने लाठियाँ मार मार कर उन्हें अधमरा कर दिया था. तभी लाठीधारियों का एक बड़ा झुंड अपनी तरफ आते देख तीनों वहाँ से भाग खड़े हुए. नीचे पड़े खून से लथपथ कराहते हुए गणेश बाबू का ध्यान अचानक मंच के कोने में गया..चार पाँच कार्यकर्ता मधुरानी को उसकी गाड़ी तक पंहुचने में कामयाब हो गये थे , उन लोगों में मधुकर बाबू भी थे. वह लोग गाड़ी में झटसे बैठ गये. मधुकर बाबू और गणेश बाबू की नज़रें आपस में मिलीं . मधुकर बाबू उनकी ओर देख एक शैतानी हँसी हँसे. फिर मधुकर बाबू ने माधुरानी से बात करते हुए गणेश बाबू की ओर उंगली से इशारा किया.मधुरानी और गणेश बाबू की नज़रें मिली.
यानी..यानी...मुझ पर जो हमला हुआ वह मधुकर बाबू ने किया और वह भी माधुरानी की सहमति से?...
लेकिन क्यों...और कैसे??...
इतने में गणेश बाबू को मधुकरबाबू के गले में अपनी सोने की चेन दिखाई दी.
अच्छा तो ऐसा हुआ...
गणेश बाबू को सब समझ आया . गणेश बाबू को जो उन तीनो ने खबर दी इसमें भी मधुकर बाबू की चाल थी...उन्होने पहले उनको हमला करने के लिए उकसाया और जब गणेश बाबू ने उन तीनों को मधुकर बाबू का गेम बजाने भेजा तो उसने यह बात जा कर मधुरानी को बता दी और सुबूत के तौर पर उनकी चेन और अंगूठियाँ दिखा दी. और फिर जब मधुरानी को यह बात मालूम पड़ी की गणेश बाबू उनको बताए बगैर इतना बड़ा कदम उठा सकते हैं तो वे भरोसे के काबिल नही हैं. फिर मधुकरबाबू ने गणेश बाबू का गेम बजाने के लिए मधुरानी से इजाज़त माँगी - जो उसने दे दी. लेकिन गणेश बाबू के मन में एक झूठी आशा पल्लवित हुई.
अब वह भी मुझे यहाँ से ले जाने का इन्तेजाम कराएगी... वे जाने के लिए तैयार ही थे.
लेकिन यह क्या ? ... वह नज़र अब उनको पहचानती तक न थी , इतना बड़ा दंगा फ़साद होने के बावजूद उन नज़रों में डर भी न था.. दुख भी न था और न दया थी..उन नज़रों में थी एक महत्वकांक्षा..,,,.रास्ते में जो भी आए उसे पैरों तले निर्ममता से रौंदने की चाहत....
मधुरानी ने उन्हें देख कर अनदेखा कर दिया और ड्राईवर को वहाँ से ले चलने का आदेश दिया. उनकी गाड़ी देखते ही देखते नज़रों से ओझल हो गयी. गणेश बाबू देखते ही रह गये. गणेश बाबू को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ. अन्य कार्यकर्ता अब भी लाठीधारियों से लड़ रहे थे।… यह सोच कर की मधुरानी अब भी वहाँ मौजूद है. यानी इन सब लोगों को यूँ ही मरने के लिए छोड़ मधुरानी वहाँ से भाग खड़ी हुई थी.
गणेश बाबू अब नीचे पड़े हुए अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे. इतने में लोगों का बदहवास झुंड उस ओर आया ...वह संख्या में इतने ज़्यादा थे की गणेश बाबू बच ना सके . उस भगदड़ में गणेश बाबू को भीड़ ने बेदर्दी से अंजाने में पैरों तले कुचल डाला..उनकी दर्द भरी चीखें किसी को शोर गुल में सुनाई न दी.
लोगों की भीड़ अब जा चुकी थी लेकिन गणेश बाबू के शरीर का एक भी हिस्सा साबुत न बचा था. थोड़ा हिलाने पर भी उन्हें बहुत दर्द होता था. उन्होने उसी हाल में पड़े पड़े आस पास देखा मधुमक्खियाँ अब भी लोगों को डंस रही थी.....लोगों ने उनसे बचने के लिए उनमें से कई मक्खियों को मसल दिया था. लेकिन वह कार्यकर्ता मक्खियाँ थी..उनका काम अपनी रानी को बचाना था..
गणेश बाबू अब अपनी मौत की प्रतीक्षा करने लगे. अब मौत ही उन्हें इस जानलेवा दर्द से छुटकारा दिला सकती थी. अचानक उनकी नज़र आकाश में गयी उन्होने देखा उस छत्ते की रानी मक्खी अपने साथ कुछ नर मधुमक्खियों और कुछ कार्यकर्ता मक्खियों को ले पूर्व दिशा की ओर उड़ रही थी...... नयी जगह की खोज में....और वह जा रही है इस बात से बेख़बर उसके अन्य कार्यकर्ता अब भी लोगों को डंस रहे थे.......ठीक माधुरानी के कार्यकर्ताओं की तरह.....
गणेश बाबू ने आखरी बार इधर उधर देखा उनके साथी भी लाठी खा कर मर रहे थे तो कुछ अब भी लड़ रहे थे. गणेश बाबू ने सोचा:
इनमें से प्रत्येक आदमी एक कार्यकर्ता मक्खी की मौत मर रहा है....…
उन हालात में भी गणेश बाबू के चेहरे पर समाधान की एक झलक दिखने लगी. उन्हें इस बात की खुशी थी की उनके आस पास मधुरानी के कार्यकर्ता एक कार्यकर्ता मधु मक्खी की मौत मार रहे थे.…
लेकिन जो मौत उनको मिल रही थी वह मौत थी एक नर मधुमक्खी की....
- समाप्त -
Original Novel by Sunil Doiphode
Hindi Version by Chinmay Deshpande
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ReplyDeleteNice one great. Thinking
ReplyDeleteapki sari novels pdi h. bahut achchhi h. em bar jb pdna suru krta hu to bich me chhodne ko dil nhi krta. lgatar suspence bna rhta he ki agge kya hoga...agge kya hoga. is trh sara bovel pd jata hu. BLACK HOLS, ADHBHOOT, SUNYA, OR AB YE E-LOVES. sb bahut achchhi thi. ab apke agle novel ka wait hai. .DHARAM RAJ SINGH, JIND
ReplyDeleteMaine aapki saari novels padh li hain. Ab aur novels ka wait kar rahi hu please reply krein ki kab nayi novels post kar rahe hain. Waiting for your reply....
ReplyDeleteWow
ReplyDeletePlease publish mragjaal in hindi. Aur kuch aur bhi novels laiye. Bahut time ho gaya koi naye nivels nahi aai. Mrigjal k saath kuch naye novels laiye jisse hum padh sakein. Pleeeeeeeeeease
ReplyDeleteOh no checked after a long time but the same novels r there. Will you please publish some more Novels. Please reply. Aap atleast answer to kijiye...
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