गणेशकी नज़र बाहर खुले में बालकनी की तरफ गयी . वह उठ कर बालकनी में आ गया उसने आस पास देखा , यह हवेली गाँव की सबसे उँचाई पर स्थित थी , लिहाजा गाँव के सभी घर उँचाई से खिलौनों की भाँति दिख रहे थे. उन घरों के आस पास खेतों की हरियाली आँखों बड़ी ठंडक दे रही थी. और उस हरियाली के बीचों बीच सर्पिले घुमावदार मोड़ ले कर झरना कल कल करता बह रहा था . चारों ओर उँचे उँचे पहाड़ और टीले के बीच में बसे हुए गाँव की उस कुदरती खूबसूरती को वह निहार रहा था .
लोगों में मची हलचल से वह अपनी सोच से बाहर आया , उसने पीछे मुड़ कर देखा . उस दीवानखाने में भारी भीड़ जमा हो गयी थी लेकिन अभी भी पाटिल साहब और सरपंच का कोई अता - पता न था . वह वापिस दीवानखाने में आया , उसकी जगह अभी भी खाली थी वह वहाँ जा कर बैठ गया. तभी गाँव के स्कूल मास्टर मते गुरु जी का आना हुआ , लोगों ने उनका अभिवादन किया , उन्होने बैठने से पहले पूरे दीवानखाने का जायज़ा लिया और कोने में बैठे हुए गणेश की ओर रुख़ कर लिया . इंसानी फ़ितरत भी बड़ी अजीब होती है, इतनी भीड़ में भी अपने बैठने लायक आरामदायक जगह तलाश कर ही लेता है . उन्होने सोचा....
कोने में बैठा हुआ गणेश भी सरकारी मुलाज़िम है और मैं भी सरकारी मुलाज़िम हूँ , हम दोनो की खूब जमेगी ...
उन्होने गणेश को नमस्ते की और उसके बगल में आ कर बैठ गये.
"और गणेश जी सब कुशल मंगल ? बड़े दिनो बाद मुलाकात हुई" उन्होने बैठे हुए गणेश को थपकी देते हुए कहा .
" जी हाँ ... हमारा आपके स्कूल की तरफ आना नहीं होता और आपका हमारे दफ़्तर में .... फिर ऐसे खास मौकों पर ही हमारी मुलाकात होती है " गणेश ने जवाब देते हुए कहा .
" जी , यह भी खूब कही आपने " मास्टर जी ने कहा.
तभी सरपंच का आगमन हुआ और दोबारा दुआ सलाम का दौर चल निकला . कुछ लोग उनका हाल चाल पूछने उनकी ओर चल पड़े .
" आ गये सब के सब ? " सरपंच जी ने जानना चाहा . उन्होने ऐसा कर लोगों को अपने आने की खबर दी .
" करीब करीब सब आ गये , सिर्फ़ पाटिल साहब का आना बाकी है.... में यूँ गया और यूँ उनको ले कर आया" उनका हाल चाल पूछने आया एक आदमी बोला .
उसकी और गौर न कर सरपंच साहब बैठक के बीचों बीच आए और रसूखदार लोगों में जा कर बैठ गये .
" शामराव जी सब ख़ैरियत ?" सरपंच ने शामराव के बगल में बैठते हुए पूछा.
" का कहें हुजूर .... अब के बरस बड़ी हिम्मत कर बुआई करा है अब देखे हमरा किस्मत में का गुल खिलना लिखा है " शामराव ने जवाब दिया .
" अरे कौनो चिंता का बात नाही अपने बड़ा काम किया आपको तो इनाम मिलना चाहिए सरकार से ... हौसला रखिए सरकारी अमले के पास ज़रूर कोई योजना होगी" सरपंच ने शामराव को तसल्ली देते हुए कहा और गणेश की ओर मुखातिब होते हुए बोले " अरे गणेश जी कोई नयी योजना है का? "
" हाँ हैं न , इस बारे में विस्तार से बात करने के लिए मैं एक बैठक बुलाना चाहता हूँ " गणेश ने जवाब दिया.
" अरे तो भई जल्दी करो.... कब लेओगे ?.... बताओ?" सरपंच ने लगेहाथ पूछ ही लिया.
" जब भी आप कहें" गणेश ने कहा.
"फिर ई शुक्रवार का दिन कैसा रहेगा ?" सरपंच ने पूछा " क्यों शामराव जी ?"
" हाँ हुजूर चलेगा" शामराव ने जवाब दिया .
" मुझे मंजूर हैं , मैं नोटिस तैयार कर चपरासी के ज़रिए सब तक पंहुचाता हूँ ..." गणेश बोला.
" अरे चपरासी का कौनो ज़रूरत नाही ... सब इधर ही मौजूद हैं .... आप तो बस वखत बताओ" सरपंच ने कहा.
"सुबह दस बजे कैसा रहेगा" गणेश ने सरपंच से पूछा .
" चलेगा ..... क्यों गाँववालों ?" सरपंच ने बैठक में मौजूद अन्य गाँववालों की राय जानना चाही .
" हाँ.. हाँ... चलेगा.. चलेगा" भीड़ में दो चार लोग बोले .
" हाँ तो गणेश जी .. ई तय रहा .. शुक्रवार के रोज सुबह दस बजे " सरपंच ने फ़ैसला सुनाया.
गणेश ने सहमति से गर्दन हिलाई . गणेश को सरपंच जी की हाथों हाथ फ़ैसला करने की अदा बड़ी भाती थी . उसे भला क्या खबर थी कि सरपंच की इसी आदत के चलते गाँव के कई लोगों को मायूसी होती थी , उनकी अक्सर यह शिकायत होती थी कि उनकी राय सरपंच कभी नहीं लेता , और उनकी तरफ से सारे फ़ैसले खुद ही लेता था .
लोगों में मची हलचल से वह अपनी सोच से बाहर आया , उसने पीछे मुड़ कर देखा . उस दीवानखाने में भारी भीड़ जमा हो गयी थी लेकिन अभी भी पाटिल साहब और सरपंच का कोई अता - पता न था . वह वापिस दीवानखाने में आया , उसकी जगह अभी भी खाली थी वह वहाँ जा कर बैठ गया. तभी गाँव के स्कूल मास्टर मते गुरु जी का आना हुआ , लोगों ने उनका अभिवादन किया , उन्होने बैठने से पहले पूरे दीवानखाने का जायज़ा लिया और कोने में बैठे हुए गणेश की ओर रुख़ कर लिया . इंसानी फ़ितरत भी बड़ी अजीब होती है, इतनी भीड़ में भी अपने बैठने लायक आरामदायक जगह तलाश कर ही लेता है . उन्होने सोचा....
कोने में बैठा हुआ गणेश भी सरकारी मुलाज़िम है और मैं भी सरकारी मुलाज़िम हूँ , हम दोनो की खूब जमेगी ...
उन्होने गणेश को नमस्ते की और उसके बगल में आ कर बैठ गये.
"और गणेश जी सब कुशल मंगल ? बड़े दिनो बाद मुलाकात हुई" उन्होने बैठे हुए गणेश को थपकी देते हुए कहा .
" जी हाँ ... हमारा आपके स्कूल की तरफ आना नहीं होता और आपका हमारे दफ़्तर में .... फिर ऐसे खास मौकों पर ही हमारी मुलाकात होती है " गणेश ने जवाब देते हुए कहा .
" जी , यह भी खूब कही आपने " मास्टर जी ने कहा.
तभी सरपंच का आगमन हुआ और दोबारा दुआ सलाम का दौर चल निकला . कुछ लोग उनका हाल चाल पूछने उनकी ओर चल पड़े .
" आ गये सब के सब ? " सरपंच जी ने जानना चाहा . उन्होने ऐसा कर लोगों को अपने आने की खबर दी .
" करीब करीब सब आ गये , सिर्फ़ पाटिल साहब का आना बाकी है.... में यूँ गया और यूँ उनको ले कर आया" उनका हाल चाल पूछने आया एक आदमी बोला .
उसकी और गौर न कर सरपंच साहब बैठक के बीचों बीच आए और रसूखदार लोगों में जा कर बैठ गये .
" शामराव जी सब ख़ैरियत ?" सरपंच ने शामराव के बगल में बैठते हुए पूछा.
" का कहें हुजूर .... अब के बरस बड़ी हिम्मत कर बुआई करा है अब देखे हमरा किस्मत में का गुल खिलना लिखा है " शामराव ने जवाब दिया .
" अरे कौनो चिंता का बात नाही अपने बड़ा काम किया आपको तो इनाम मिलना चाहिए सरकार से ... हौसला रखिए सरकारी अमले के पास ज़रूर कोई योजना होगी" सरपंच ने शामराव को तसल्ली देते हुए कहा और गणेश की ओर मुखातिब होते हुए बोले " अरे गणेश जी कोई नयी योजना है का? "
" हाँ हैं न , इस बारे में विस्तार से बात करने के लिए मैं एक बैठक बुलाना चाहता हूँ " गणेश ने जवाब दिया.
" अरे तो भई जल्दी करो.... कब लेओगे ?.... बताओ?" सरपंच ने लगेहाथ पूछ ही लिया.
" जब भी आप कहें" गणेश ने कहा.
"फिर ई शुक्रवार का दिन कैसा रहेगा ?" सरपंच ने पूछा " क्यों शामराव जी ?"
" हाँ हुजूर चलेगा" शामराव ने जवाब दिया .
" मुझे मंजूर हैं , मैं नोटिस तैयार कर चपरासी के ज़रिए सब तक पंहुचाता हूँ ..." गणेश बोला.
" अरे चपरासी का कौनो ज़रूरत नाही ... सब इधर ही मौजूद हैं .... आप तो बस वखत बताओ" सरपंच ने कहा.
"सुबह दस बजे कैसा रहेगा" गणेश ने सरपंच से पूछा .
" चलेगा ..... क्यों गाँववालों ?" सरपंच ने बैठक में मौजूद अन्य गाँववालों की राय जानना चाही .
" हाँ.. हाँ... चलेगा.. चलेगा" भीड़ में दो चार लोग बोले .
" हाँ तो गणेश जी .. ई तय रहा .. शुक्रवार के रोज सुबह दस बजे " सरपंच ने फ़ैसला सुनाया.
गणेश ने सहमति से गर्दन हिलाई . गणेश को सरपंच जी की हाथों हाथ फ़ैसला करने की अदा बड़ी भाती थी . उसे भला क्या खबर थी कि सरपंच की इसी आदत के चलते गाँव के कई लोगों को मायूसी होती थी , उनकी अक्सर यह शिकायत होती थी कि उनकी राय सरपंच कभी नहीं लेता , और उनकी तरफ से सारे फ़ैसले खुद ही लेता था .
क्रमशः
Original Novel by Sunil Doiphode
Hindi Version by Chinmay Deshpande
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