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Hindi literature books - Novel Madhurani - CH-5 उजनी

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Hindi literature books - Novel Madhurani - CH-5 उजनी

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Thought of the day -
Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
--scar Wilde

कंडक्टरने बजाए बेलसे गणेश होशमें आगया. गाडी रुक गई. उसने बाहर झांककर देखा. उजनी अभीतक नही आई थी.

" उजनी और कितनी दूर है ? " उसने अपने बगलमें बैठे देहातीसे पुछा.

" बहुत दूर है... आरामसे एक झपकी लियो ...  आनेके बाद मै जगाये दूंगा  जी  ... " वह देहाती बोला.

'इतने गढ्ढोसे धक्के देते हूए चल रही बसमें निंद आना कैसे मुमकिन है ? ' उसने मनही मन सोचा.

"धक्कोंका मत सोचियो जी  ...  मानो की झूला झुलाये रहा ...  "

गणेशने चौंककर उस देहातीकी तरफ देखा. उसे इस बातका आश्चर्य हो रहा था की उसने उसके मनकी बात कैसे जान ली थी. उस देहातीने फिरसे अपनी निर्विकार नजर सामने रास्तेपर जमाई.  गणेश फिरसे अपने विचारोंके दुनियामें चला गया.

वह तहसिलकी जगह और वहांके मौहोलसे अच्छा खासा घुल मिल गया था. इसी बिच उसकी शादी होकर उसे एक बच्चाभी हो गया था.

विनय - कितना प्यारा बच्चा....

और पहलाही लडका होनेसे मांको कितनी खुशी हो गई थी...

अपने परिवारको अकेला छोडकर यहां नौकरीके लिए आना उसके जानपर आया था. लेकिन कोई चाराभी तो नही था. उसके बिवीको और बच्चेकोभी यहां देहातमें लाना एक रास्ता था. लडकेको उसने इसी साल केजीमें  डाला था. और यहां देहातमें केजी वैगेरा तो कुछ नही था उपरसे पढने पढानेके लाले थे.

आखिर अपने परिवारके उत्कर्षके लिए उसे इतना त्याग करना जरुरी अपरिहार्य था....

एक जगह बसकी  गति कम हो गई और बस मेन रोडसे  दाई तरफसे एक कच्चे रास्तेपर उतर गई. जैसेही बस कच्चे रास्तेसे चलने लगी बसमें बैठनेवाले धक्कोमें वृध्दी हुई थी. गणेश सामनेके सिटके डंडेको पकडकर सहमकर बैठ गया. गणेशने खिडकीके बाहर झांककर देखा. बाहर हरेभरे खेतमें मजूर काम करते हूए दिख रहे थे. बिचमेंही कही कुव्वेके बगलमें पाणीके पाईपसे गिरता हुवा कांचकी तरह निर्मल पाणी दिख रहा था. खेतमें बसी छोटी छोटी झुग्गी झोपडीयां और उपर आसमानमें उड रहे पंछी और उन्हे डरानेके लिए जगह जगह खडे किए मटकेके सरके पुतले. गणेशका मन मानो उस खेतके दृष्योंमें खो गया था. मानो बसमें बैठरहे जानलेवा झटकोंका उसे विस्मरण हो गया . सचमुछ कितना सुंदर जिवन है यहां देहातका. लेकिन फिर रास्तेके एक तरफसे दौडनेसमान चल रहे कृश और पतले लकडीवालोंको देखकर उसका यहांके जिवनके बारेमें फिरसे मतपरिवर्तन होकर पहलेजैसा हो गया .

अचानक बसमें यात्रीयोंकी हरकत बढ गई. और धुलके बादल बसके चारो तरफ मंडराने लगे. बसने गांवकी हदमें प्रवेश किया था.

" अब आवेगी  उजनी " , बगलमें बैठा देहाती बोला.

बाहर मंडरा रहा धुलका बादल खिडकीके रास्ते बसके अंदर घुस गया. गणेश जल्दी जल्दी खुले खिडकीकी कांच निचे खिसकाने लगा. लेकिन वह कांच अपनी जगहसे हिलनेको तैयार नही थी. वह अब उठ खडा होकर प्रयास करने लगा. वह जी तोड कोशिश करने लगा. तब तक उसका चेहरा धुलसे मलिन हो गया. उसके बगलमें बैठा देहाती उसे देखकर मुस्कुराया.

"कोई फायदा ना होवे  साब ... उसमें धुल घुसकर वहभी  पक्का हो गया है जी  ...  हमारे जैसा ... तुमभी आदत डालियो  ...  आगे अच्छा होवेगा  "

गणेशने उस देहातीकी तरफ सिर्फ देखा और चुपचाप निचे बैठकर खिडकी बंद करनेका प्रयास छोड दिया. अचानक किसी चिजकी बदबु खिडकीके रास्ते गणेशके नाकमें घुस गई. उसने जेबसे रूमाल निकालकर अपने नाकको लगाया. वह देहाती फिरसे मुस्कुराया. गणेशने खिडकीसे बाहर झांककर देखा तो बाहर रास्तेके दोनो तरफ सुबह सुबह लोग लॅटरीनके लिए बैठे थे. और बस आ रही है यह देखकर वे एक एक कर उठ खडे हो रहे थे, मानो बसके सम्मानमें अदबके साथ एक एक करके उठ खडे हो रहे हो. वह गांवके बाहर लोगोंकी शौच के लिए जानेका खुला मैदान था. और उसके बाद एक झरना था, जिसे वहां के लोग नाला कहते थे. नालेपर बिछा टूटनेको आया पुल पार कर बस गांवमें घुस गई.

बस गांवमें घुसतेही चारपांच छोटे छोटे नग्न बच्चोंका कांरवा बसके पिछे दौडने लगा. और बसके दुसरी ओर चारपांच लावारिस  कुत्ते बसके पिछे दौडने लगे. मानो बस आनेसे उस मरीयल देहातमें जान आ गई हो.

' आ गई आ गई ...' कहते हूए, एक जगह रास्तेके किनारे खडे लोगोंने बसका स्वागत किया.

उन लोगोंको बसमें बैठकर आगे जाना था. ड्रायव्हरनेभी, शायद उनका मजाक करनेके लिए, बस उन लोगोंसे काफी आगे ले जाकर खडी की. जैसेही बस आगे जाने लगी वे लोगभी बसके पिछे दौडने लगे. पहलेही वे नग्न बच्चे और कुत्ते उस बसकी पिछे दौड रहे थे, और अब वे लोगभी बसके पिछे दौडने लगे थे. दृष्य काफी मजेदार था. .

जैसेही बस रुक गई, अंदर आनेवालोंकी और बाहर जानेवालोंकी दरवाजेमें काफी भिड जमा हो गई. गणेशने सोचा, थोडी देर रुकते है और भिड कम होनेके बादही बाहर निकलते है. ...

लेकिन कोई रुकनेके लिए तैयार नही था. बाहेरके लोगोंको अंदर आनेकी और अंदरके लोगोंको बाहर निकलनेकी मानो बहुत जल्दी हो गई थी. उपरसे बाहरके कुछ लोग बंदर जैसे खिडकीयोंकों लटक लटककर खिडकीके अंदर रूमाल, टोपी या अपनी थैली सिटपर रखकर अपनी जगह आरक्षीत करने लगे. गणेश वह सारा नजारा देख रहा था. भिड कम नही हो रही है यह देखकर वहभी उतरने लगा, उतरते हूए उसका ध्यान एक खिडकीकी तरफ गया. एक बाहरके अंदर आनेके लिए उत्सुक यात्रीने तो हद्द कर दी थी. उसके पास जगह आरक्षीत करनेके लिए शायद कुछ सामान नही रहा हो, तो उसने सिधे खिडकीसे लटकर अपनी जगह आरक्षीत करनेके लिए खिडकीसे अपनी चमडेकी चप्पल अंदर सिटपर रख दी. गणेशको चिढभी आ रही थी, और हंसी भी. भिडसे किसी तरह जगह बनाकर बाहर उतरते हूए गणेशकी सांस चढ गयी थी. किसी तरह लोगोंसे उलझते सुलझते हूए वह बससे निचे उतर गया. जब वह बाहर आया उसके सारे बाल बिखरे हूए, अस्त व्यस्त हो गए थे. और कपडोंपर झुरीया आकर अव्यवस्थित हो गए थे और शर्टकी इनभी बाहर निकल आई थी. उसे क्या मालूम था की शायद उसने की हुई वह शर्टकी आखरी इन होगी. बाहर आए बराबर खुली हवामें सांस लेनेके बाद कहा उसे अच्छा लगा. वह पल दो पल वही रुक गया. अगले पलही वह बस फिरसे रास्तेकी धुल और डिजलका  धुंआ उडाती हूई आगे निकल गई.

क्रमश:..

Thought of the day -
Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
--- scar Wilde

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