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Hindi literature - Novel - Madhurani - CH-9 खराडे साब

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Hindi literature - Novel - Madhurani - CH-9 खराडे साब
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Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
-oscar Wilde

गणेश ऑफिसमें  बैठकर पुराने ग्रामसेवककी राह देखने लगा. सरकारने ग्रामपंचायतके व्दारा ग्रॅन्ट  देकर जहां हर बृहस्पतीवारको हर हफ्ते बाजार भरता था वहीं मैदानमें एक कोनेमें एक अच्छा खांसा छोटा ऑफीस बनाकर दिया था. पुराने ग्रामसेवकसे चार्ज  लिए बैगर गणेशको वहां काम शुरु करना मुमकीन नही था. तभी उसे दरवाजेमें किसीकी आहट हो गई. गणेशने उधर देखा.

लगता है आगए है पुराने ग्रामसेवक...

वह उनकी अंदर आनेकी राह देखने लगा. काफी समय होगया फिरभी कोई अंदर नही आया यह देखकर गणेशने फिरसे उस तरफ देखा. उसे फिरसे वहां दिवारपर कोई साया हिले जैसा दिखा.

शायद कोई देहाती होगा ... और कामके लिए आया होगा ...

साला अबतक चार्जही नही लिया और ये लोगोंका होगया शुरु...

" कौन है ?" गणेश अपनी जगहसेही चिल्लाया.

एक फटे पुराने कपडे पहना हूवा आदमी अंदर आ गया.

" मै हूं साबजी  ... पांडू"

" देखो मै आजही यहां जॉईन  हुवा हूं ...अभी मैने चार्जभी नही लिया है ... तुम कल आ जावो ..."

" नाही साबजी  ... मै ईहां का चपरासी हूं "

" चपरासी ... लेकिन ऑर्डर लेते वक्त तो मुझे ऐसा कुछ नही बोला गया था की यहां कोई चपरासी भी है "

" मतलब वैसे नाही साबजी  ... "

कुत्ता जैसे अपनी दुम हिलाते हूए अपने मालीक के पास जाता है वैसे वह गणेशके पास गया.

" अच्छा अच्छा ..." अब गणेशके खयालमें आगया.

" अरे ... खराडे साब कैसे नही आए अबतक ..." गणेशने उसे पुछा.

" अभी आवत  ही रहे होंगे... वे उनके गांवसे आवत रहे  ना... इसलिए कभी कभी देर हो जात रही  ..."

" देर ?... सुबह आने चाहिए थे... अब दोपहर हो कर गुजरी है... फिरभी नही आए है अबतक .."

" आ जावेंगे साबजी ... कभी कभी हो जात रही....ऐसन  "

" और तुम कहां रहते हो ..." गणेशने पुछा.

" ई यहीं ... उस तरफ वाली गलीमें... ई हां ऑफीसमा  कुछ आहट होई गयी इसलिए आवत रहा ... मुझे लगा खराडे साब आवे  है... तभी आते हुए रास्तेमें सरपंचजी मिलत  रहे  ... उन्होने कहां की नए साबजी  आवे  है करके... "

यह स्पष्ट था की पुराने ग्रामसेवककी आनेका ऐसा कुछ समय तय नही था. गणेश कुछ नही बोला. उसने फिरसे अस्वस्थतासे अपनी घडीमें देखा.

" चाय पाणी ... कुछ लावू क्या साबजी  "

" चाय? ... यहां कही हॉटेल  है क्या ?"

" नाही साबजी  ..."

" फिर चाय कहांसे लावोगे... ? "

" लाऊंगाजी  आस पडोससे ... किसीके घरसे... "

" और पैसे..."

" साबजी ने बोलने के बाद ... पैसे लेनेकी किसकी मजालजी ? "

" लेकिन ऐसे कैसे ... कुछ किसीके यहांसे लानेका और वहंभी बेदाम ..."

" साबजी  ... ईहांकी पब्लीक  बहुत येडी है ... जबरदस्ती दिया तो भी पैसे नही लेवेगी... फिर हमराभी क्या जाता है.... बेदाम तो बेदाम " वह ताली लेनेके लिए गणेशके सामने हाथ करते हूए बोला.

गणेशने उसके फटे पुराने और मैले कपडेकी तरफ और उसके पसीनेकी बदबुभरे शरीर की तरफ देखकर अपना ताली लेनेके लिए सामने जाता हूवा हाथ रोक दिया. साफ झलक रहा था की वह गणेशको खुलाना चाहता था.
फिरसे दरवाजेमें कुछ हरकत हुई. गणेशने और पांडूने उधर देखा. उन्होने देखा की आखिर खराडे साहब आ गए थे. खराडे साब मतलब सफेद पैजामा और उपर रेशमी शर्ट , मुंहमें पान, तेल लगा चिकनाई भरा चेहरा, सरपर पतले हूए लेकीन अबभी पुरी तरह काले - तेल लगे हूए बाल.

चलो आगए एक बार खराडे साब...

" नमस्कार साबजी..." पांडूने नमस्कार किया. 

पांडूके नमस्कारकी उपेक्षा करते हूए आए बराबर उन्होने वही एक कोनेमें मुंह मे भरे पान की पिचकारी मारी.

" अरे क्या करे... घरसे सुबह ही निकला लेकिन देखो कैसे आते आते दोपहर हो गई... ." कुर्सीपर बैठते हूए वे गणेशरावकी तरफ देखते हूए बोले.

गणेश सिर्फ उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया. उसे मालूम था की उनसे अब देरसे आए बात के लिए बहस करनेसे सिधे चार्ज हॅड ओवर करनेके बारेमें बात की जाए तो सब कुछ उतनाही जल्दी होगा. नहीतो और एक दिन लगेगा.

" कितना समय लगेगा चार्ज लेनेको ..."

" उसका क्या है गणेशराव ... मुझे देनेमे कुछ समय नही लगेगा... पांच मिनिटका  काम है... लेकिन तुम्हे लेनेमे कितना समय लगता है यह तुम देखो... " खराडे साहब मानो अपने खुदकेही जोक पर हंसते हूऎ टेबलके निचे पैर लंबे करते हूए बोले.

पांडू आगे आगया और उन्होने अपनी बॅग पांडूके हाथमें थमा दी. पांडूने वह बॅग बगलमें दिवारमें बने बिनादरवाजेकी अलमारीमें  रख दी. वहां अलमारीमें औरभी बहुत धुलमें पडे कागजाद रखे हूए थे. कोनेमें एक गोदरेजकी अलमारी थी.

उसमें सब महत्वपुर्ण फाइलें रखी होगी... गणेशने सोचा. 

अभीभी खराडे साहब कामके बारेमें कुछ नही कर रहे है यह देखकर गणेश बोला, " तो शुरवात करे...."

" रुको भाई ... ऐसीभी क्या जल्दी है.... पहले आरामसे चाय पिएंगे... और फिर कामके बारेंमे सोचेंगे.... सरकारी काम अगर ऐसेही फटाफट होने लगां तो कैसे होगा... तुम अभी नये हो... बच्चे हो... हो जायेंगी धीरे धीरे आदत... मैभी नया था तब ऐसे ही था... तुम्हारे जैसे... लेकिन सच कहूं ... बहुत गुस्सा आता था पहले... सरकारी लोगोंका ... मैनेतो सारी सिस्टीम बदलनेकी ठान ली थी.... लेकिन अब देखो... निकले थे सिस्टीमको बदलने .... और खुद बदलके रह गए... " खराडे साहबकी बडबड शुरु होगई.

गणेश सिर्फ सुन रहा था. उसे मालूम था की बोलकर कुछ नही होनेवाला. उलटी औरभी देरी हो जाती.

" ए पांड्या ... जरा शांताबाईके यहांसे चाय लेकर आ" खराडे साहबने आदेश दिया.

पांडू तुरंत दौडते हूए बाहर चला गया. खराडे साबने अब बैठे बैठे ही अपनी कुर्सी पिछे खिसकाई और आरामसे बैठते हूए पुछा,

" तो... यही रहोगे या अपडाऊन  करोगे ?"

" यही एक कमरा दिया है सरपंचजीने "

" अच्छा... सरपंच बहुत अच्छा आदमी है यहां का"

खराडे साहबने इधर उधर कोई है तो नही यह देखा और जितना हो सके उतना गणेशके पास उपना मुंह लेकर कहा, " तुम हो इसलिए एक पर्सनल  मशवरा देता हूं ..."

गणेश खराडे साहब क्या बोलते है इसकी राह देखने लगा.

" यहां के लोग... बहुत बुरे है .. यहां किसीके झमलेमें मत पडो... यहां हम भले और हमारा काम भला ऐसे रहना पडता है.... एक को सलाह दो तो दुसरेको बुरा लगता है... और दुसरेको दो तो तिसरेको गुस्सा आता है... अब क्या बोलू तुम्हे ... बहुत बुरा गांव है ये... मतलब ... मेरे पुरे नौकरीके अबतक के कार्यकालमें मैने इतना बुरा गांव कही देखा नही " खराडे साहब बोल रहे थे.

गणेशको खराडे साहबकी फालतु बकवास सुननेमें बिलकुल दिलचस्पी नही थी. उसे कब एकबार चार्ज लेकर कामपर लग जाता हूं ऐसे हो गया था.

" सब फाईल इस अलमारीमें रखी होगी ... नही ? ..." गणेश फिरसे असली बातपर आते हूए बोला.

खराडे साहब कुछभी बोले नही. फिरसे एकबार कोनेमें जाकर पानकी पिचकारी मारकर आगए.

" आलमारीकी चाबी आपके पासही होगी ... नही? ... " गणेश फिरसे बोला ताकी खराडे साहब कुछ जल्दी करे.

" क्या भाईसाब... आप तो बहुत ही व्याकुल हो रहे हो... मेरी बात मानो ऐसी सिन्सीयारीटी गव्हर्मेंटमें  कुछ कामकी नही ... कभी कभी तो ऐसी सिन्सीयारीटी हमारे लिए ही खतरा बन जाती है... मतलब ये मेरे अनुभवके बोल है... मै तो बोलता हूं ये बोल लिख लो... "

गणेशको अब इस आदमीको कैसे हॅन्डल  करे कुछ सुझ नही रहा था. उसे चिढभी आ रही थी और हंसीभी आ रही थी. लेकिन चिढकर काम नही बननेवाला था और हंसनेसे तो और भी खतरा था. उलटा काम बिगड सकता था. आखिर गणेशने अपने पल्ले बांध लिया की भले दो दिन क्यों ना  लगे  ... लेकिन खराडेसाहब के अनुसारही आगे चलना चाहिए. वैसेभी उनके पास कौनसा दुसरा रास्ता था. ?. उधर खराडे साहब की फालतु बकबक चल रही थी और इधर गणेश एक अपने अलगही दुनियामें रममान हुवा था की जिसमे उसे खराडे साहबकी बकबक तो सुनाई दे रही थी लेकिन चिढभी नही आ रही थी और हंसीभी नही आ रही थी.


Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
-oscar Wilde


continued ... 



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When hungry, eat your rice; when tired, close your eyes. Fools may laugh at me, but wise men will know what I mean.
in-Chi
खाना-वाना होनेके बाद दोपहर गणेश और सरपंचजी घरसे बाहर निकले. उनके साथ एक नौकरभी था.

"सबके  पहले आपके रहनेका ,  खानेपीनेका इंतजाम करना जरुरी है... हर बार अपडाऊन करना आपसे ना ही हो पावे गा ... "

" हां मुझेभी ऐसाही लगता है ... कमसे कम यहां हूं तबतक एखाद कमरा रहनेके लिए मिलता है तो बहुत अच्छा होगा "

" मिलेगा ना... जरुर मिलेगा... उधर हमरा और एक घर है .... वहां अभी कोई ना ही रहत... लेकिन वहां हम सारा खेतीका सामान समान  जैसे की हल, दरांती, कुल्हाडी, और खेतीमें लगनेवाली जंजीरे, रखत है ... लेकिन सामनेके कमरेमें आप आरामसे रह पावे  है... . "

" हां ... उतनी ही रखवालदारी हो जावेंगी हमरे सामान सुमानकी ... " सरपंचजीका नौकर बिचमेंही बोला.

सरपंचजीने उसकी तरफ कडी नजरसे देखते हूए उसे चूप रहनेका इशारा किया.

साले बेवकुफ़ नौकर कभी नही सुधरेंगे ... उन्हे कब कहां क्या बोलना चाहिए.. थोडा भी दिमाग नही है....
सरपंचजीने सोचा.
गणेशरावको क्या लगा होगा... की मै उन्हे रखवालीके लिए अपने घरमें पनाह दे रहा हूं ...

" लेकिन सरपंचजी ... मै जादा कुछ किराया नही दे सकुंगा. "

" अरे आप उसकी चिंता मत किजीयो ... हम क्या आपसे किराया लेवेंगे ? " सरपंचजीने गणेशके पिठपर थपकी लगाते हूए कहा.

" नही ... नही ... ऐसे कैसे... जो कुछ भी होगा आप बता दिजीए.. "

'' अरे गणेशराव ये  क्या शहर है ....  आपसे किराया लेवेंगे  तो ... सारे गांव मे हमरी नाक कट जावेंगी ... "

चलते हूए अबतक गणेशके खयालमें आ चुका था की यह वही रस्ता है जिससे वे बसस्टॉपसे सरपंचजीके घरकी तरफ जाते हूए गुजरे थे.

" सुबह हम इधरसेही गुजरे थे... "

" हां ... हमरा घरभी इधरही आवे  है ... हमरे घरके सामनेसेही  गुजरे होंवेंगे . "

वे तिनो फिरसे सुबह जिस दुकानके सामनेसे गुजरे थे उस दुकानके सामने आ गए. दुकानके गल्लेपर अबभी वही सुंदर युवती बैठी हुई थी. उसकी तरफ देखकर ना जाने क्यो गणेशके शरीर से एक अजिबसी सिरहन दौड गई. उसकी दिलकी धडकन तेज होने लगी थी. अभीभी उस युवतीका ध्यान उसकी तरफ नही था. लेकिन उसकी दिल मोह लेनेवाली तेज बिनदास हरकते देखने लायक थी.

" वह हमरी मधुराणीका दुकान " गणेशके देखनेका रुख देखकर सरपंचजीने कहा.

" अच्छा .. अच्छा " गणेश ज्यादा दिलचस्पी ना दिखाते हूए बोला.

" और उसकी दुकानके एकदम सामने है हमरा घर " सरपंच उस दुकानके सामने स्थित एक घरके सामने खडे होते हूए बोले.

सरपंचजीके बोलनेमें शायद कुछ शरारत छिपी हुई थी... कमसे कम गणेशको वैसे लगा था.
और सरपंचजीका दुसरा घर मतलब, इट-पत्थर और मिटी से बने हूए 3-4 कमरे थे. घर उपरसे लोहेके टीन - छप्परसे ढंका हुवा था. और वे टीन नटबोल्टसे फिट किए होनेसे छप्परको बिच बिचमें छोटे छोटे गढ्ढे दिख रहे थे. सरपंचजीने नौकरके हाथमें चाबियां थमाते हूए उसे सामनेका ताला खोलनेका इशारा किया. नौकरने चाबी लेकर जल्दीसे सामनेके दरवाजेपर लगा हुवा ताला खोला. तभी गणेशके बगलमें ऐसी कुछ हरकत हूई की वह की वह चौंक गया. देखता है तो लगभग उसके शरीर को स्पर्ष करती हूई मधुरानी उसकी बगलमें आकर खडी हो गई थी.

" नमस्कार सरपंचजी " मधुराणीका मधुर स्वर गुंजा.

कितना मधूर और आंदोलीत करनेवाला स्वर था वह...

" नमस्कार " सरपंचजीने पलटकर उसके नमस्कार को प्रतिसाद दिया.

" बहुत दिनों बाद दिखाई देवे  है ... . क्या घरको रंग देनेका सोच तो नाही रहियो ...  ऐसी बात होवे तो हमें बताई दियो ... हमरें दुकानमें पडी   है कुछ रंगरोटी  " वह सरपंचजीसे बोली.

गणेश एकदम उसके करीब खडा उसकी हर अदा, उसके बोलनेका ढंग, उसकी हर हरकत निहार रहा था. बोलते वक्त उसकी रसीले गुलाबी होठोंसे झलक रहे उसके सफेद दांत विषेश मादक लग रहे थे. गणेश अपने होश हवास खोकर उसकी हर अदा निहार रहा था.

" अरे नाही ... हमरे गांव में ये नए ग्रामसेवक आवे  है... गणेशराव ... उनके रहने का इंतजाम करने की सोच रहे है  "

" अरे सच्ची  ... शहरके दिखाई देवत रहे  .... मेरा तो ध्यानही नाही ही था.... सोचा कोई नया मेहमान होवे है  " वह गणेशकी तरफ देखते हूए बोली.

अब वह उससे जरा दूर हटके खडी होगई. गणेशका दिल मायूससा होगया. उसे वह उसका हल्का हल्का स्पर्ष अच्छा लग रहा था. लेकिन उसके चेहरेपर छाई वह मायूसी फिरसे हट गई. उसकी वहं सिधे दिलको छुनेवाली मादक नजर अब उसे घायल कर रही थी. उसकी तरफ देखकर गणेश मंदसा मुस्कुराया.

" अच्छा तो बाबूजी आप ईहां रहनेवाले हो...  फिरतो  आप हमरे पडोसी होवे है ... हमरा बहुत जमेगा.. देखोजी ... " उसने आगे कहा.

तबतक सरपंचजीका नौकर दरवाजा खोलकर अंदर चला गया.

"अच्छा गणेशराव मै क्या सोचरिया... आप आगेका कमरा लीजो  .. " सरपंचजी बोले.

" अच्छा सरपंचजी ... आती हूं " मधुराणी वहांसे निकलकर अपने दुकानकी तरफ जाते हूए बोली.

सरपंचजीने गर्दन हिलाई . जाते हूए उसने गणेशकी तरफ देखते हूए एक मुस्कान दी. गणेशभी उसकी तरफ देखते हूए मुस्कुराया. जैसे वह वहांसे चली गई सरपंचजी और गणेश उस नौकर के पिछे कमरेमें घुस गए. वह नौकर अंदर आकर इधर उधर कुछ ढुंढ रहा था.

" ए येडे पहले लाईट तो जलाई दे ... हमरे नौकर ना एक एक नमुने होवे  है ... " सरपंच चिढकर बोले.

नौकरने वापस आकर दरवाजेके बगलमें स्थित बल्बका स्वीच दबाया. अंधेरे कमरेमें सब तरफ बल्बकी पिली पिली रोशनी फैल गई. कमरेंमें सब तरफ हल, दरांती, कुल्हाडी, और खेतीमें लगनेवाली जंजीरे, जैसे सामान सब तरफ फैलकर रखे हूऐ थे.... और उस सामानपर धुल की एक हलकीसी परत जमी हूई थी. कुछ थैले भी रखे हूए थे जिसके मुंह रस्सीसे बंधे हूए थे.

" तो फिर बोलियो  कैसा रहा ये कमरा.... ' सरपंचजीने गणेशसे कहा.

और आगे नौकरको कुछ आदेश देते हूए बोले, ' ए तूम इस कमरेंमे रखा  सामान सुमान अंदरके कमरेंमे रख  दियो और इन्हे यह कमरा साफ कर दीजो ... बाबूजी आजसे ईहां रहेंगे  ... . "

" जी साबजी  " नौकरने हामी भर दी.

" और हां न्हाणी उधर अंदर है "

"न्हाणी?"

"मतलब बाथरुम जी " सरपंचजी हसते हूए बोले.

गणेशने अंदर जाकर बाथरूम देख ली.

गणेश बाहर आते हूए बोला " संडास.... संडास नही दिख रहा है "

" गणेशराव ....ई देहात है... ईहां सब लोगोंको खुली हवाकी आदत है... एकबार सरकारने संडास बांध दिए थे ईहां... लेकिन उसमें कोई नही जाता रहा ... आखीर लोगोंने तुड़वा दिए ... कमसे कम एक तो रखना था... आपके जैसन  लोगोंके वास्ते ... "

गणेशका चेहरा उदास हो गया. वह अपने चेहरेके भाव छुपाता हुवा बोला, " वैसे कमरा अच्छा है... वैसे मैभी कुछ जादा रुकनेवाला नहीं हूं यहा... हफ्तेमें दो तिन बार बस... "

" और संबा अब एक काम लगाई रहा तुमरे  पिछे... गणेशराव जब जब ईहां रुकेंगे... उनका पाणी वानी भरना तुम्हारी तरफ  ... समझे... " सरपंचजीने अपने नौकर को ताकीद दी.

" पाणी ? " गणेशने आश्चर्यसे पुछा.

" अब नल कहां है ? ये  मत पुछियो  जी .. " सरपंचजी गणेशका मजाक करते हूए बोले.

गणेश फिरसे झेंपसा गया.

" हमारा ये नौकर आपको पाणी कुंएसे भरकर लाकर देवत  रहेगा... " सरपंचजी ने कहा.

" चलो अब उधर ऑफीसमें जावत रहे ... तबतक तुम साफ सफाई करियो ... समझे... " सरपंचजीने अपने नौकरको फिरसे आदेश दिया.

" जी साबजी  " नौकर बोला और उसने अपना काम शुरु कर दिया.

सरपंचजी और गणेश कमरेसे बाहर आगए और आफिसकी तरफ निकल पडे. जाते हूए गणेश लाख कोशीश की बावजुद अपनी नजरको मधूराणीकी दुकानकी तरफ जानेसे रोक नही सका.

क्रमश:...


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Courage is not the absence of fear, but rather the judgement that something else is more important than fear.
-Ambrose Redmoon

वे दोनो सरपंच के मकानके पास जाकर पहूंचे. मकान कैसा.... वह तो एक हवेली थी हवेली! हवेलीके अंदर जानेके लिए सामनेही पुराना तेल लगा लगाकर काला हुवा बहुत बडा दरवाजा था. हवेलीका  विस्तार भी बहुत बडा था. कमसे कम सामनेसे तो वैसेही लग रहा था. हवेलीकी बायी  ओर, हवेलीसे सटकर सरपंचकी  बहुत बडी गोशाला थी. अभी वह खालीही दिखाई दे रहा थी, शायद जानवर सुबह जल्दीही चरनेके लिए जंगलमें चले गए होंगे. गणेशको अंदर ले जाते हूए सदाने  दायी  तरफ जो बैठक थी उसमें गणेशको बिठाया. बैठक मतलब एक थोडी उंचाईपर बंधा एक कमरा था, और उसमे गद्दे इत्यादि बिछाए हूए थे. गणेश बैठकमें इधर उधर देखते हूए ही अंदर गया. उधर सदा घरके अंदर चला गया था, शायद सरपंचको बुलानेके लिए. बैठकमें दिवारोंपर अलग अलग प्रकारकी तस्वीरे लगाई हूई थी - जैसे नेहरु, लाल बहादूर शास्त्री, महात्मा गांधी, इत्यादि. गणेश उन तस्वीरोंको देखते हूए एक जगह गद्देपर बैठ गया. दिवारपर उसका ध्यान एक गंभीर प्रभावशाली लंबी लंबी मुंछोवाले, सरको महंगीसी पगडी बांधे हूए एक आदमी की तस्वीर की तरफ गया. शायद वे सरपंचके पिता होंगे या पिताके पिता होंगे. तभी अंदरसे सदा एक बाल्टीमें पानी ले आया.

" आवो  साबजी  हाथपैर धो लिजियो  ... इतनी  दुर से आवत रहे  ... थक गए होंगे... " बाल्टी लेकर सदा सामने बाहरी चबुतरेपर जाते हूए बोला.

" हां ... " कहते हूऐ गणेश उठ गया और उधर चला गया.

लोटेसे बाल्टीसे पानी लेकर गणेशने हाथ पैर मुंह धोकर, मुंह मे पाणी लेकर कुल्ला किया और अब वह पानी थूकनेके लिए इधर उधर देखते हूए जगह ढूंढने लगा.

" इहा  सामने थूक दियो जी   ... " सदाने गणेशकी उलझन देखते हूए कहा.

उसने अपने आपको असहज महसूस करते हूए अपने मुंहमे भरा हूवा पानी सामनेही लेकिन थोडी दूर थूकनेकी कोशीश की तो सदा मन ही मन मुस्कुराया.

" सरपंच पुजापाठ करत  रहे है ... थोडी देरमें आ जावेंगे...  आप आरामसे बैठकमें बैठीयो ... मै चायपानीका इंतजाम कराये देवत  हूं " गणेशके पास हाथपैर पोछने के लिए एक तौलीए जैसा कपडा देते हूए सदाने कहा. जब गणेश हाथपैर पोछने लगा, सदा जल्दीसे अंदर चला गया.

गणेशको अब, हाथपैर धोनेके बाद तरोंताजा महसूस होने लगा था. बससे आनेकी वजहसे चेहरा पसिना और धुलसे मलिन हुवा था. चेहरा पोछते हूए वह पैर लंबे कर लोडपर लेट कर बैठ गया. बसमें पैर एक सिमीत दायरेमें रखनेसे अकड गए थे. चेहरा पोछकर कपडा एक तरफ रखते हूए उसने अपनी थकान दुर करनेके उद्देशसे  पैरोंको और जोडोंको ढीला छोड दिया. तभी सदा पिनेके लिए पानी लेकर आया. यहा का पानी पिलानेका तरीका कुछ अलगही लग रहा था. सदाने पानीसे भरा हूवा पितल का लोटा गणेशके हाथमें थमाया. लोटेको उपरसे पितलकीही एक कटोरीसे ढका था. यह ऐसा तरीका उधर बारामतीकी तरफ उसने देखा था. जितना लगता है उतना पानी कटोरीमें खुद लो और पानी पिनेके बाद फिरसे लोटेको उसी कटोरीसे ढको. ना जाने क्यो यह तरीका उसे पहले देखा तबभी अच्छा नही लगा था. उसके मनमें एक आशंका हमेशा रहती थी की अगर कटोरीसे पानी पिकर कटोरी फिरसे लोटेपर रखी तो कटोरीका झूठा पानी लोटेमें फिरसे गिरेगा. लेकिन यह हूई उसकी सोच, उधर बारामतीकी तरफ तो बडे बडे लोग इसी तरह से पानी पिते थे. वैसे उसे प्यासभी बहुत लगी थी. सुबह पौ फटनेसे पहले घरसे बाहर निकलनेके बाद अबतक पानी की एक बुंद उसके पेटमे नही गई थी. वह मुंह के उपर लोटा तिरछा कर उपरसे गटागट पानी पिने लगा. लोटा खाली होनेके बादही उसने निचे रखा और एक लंबी सांस ली.

" बहुत प्यास लगी रहत  ... है जी ?... और लेकर आऊ? " सदाने पुछा.

गणेशने सर हिलाकर 'नही' कहा.

सरपंच पुजापाठ निपटाकर शांतीसे बैठकमें आ गए. सफेद धोती और उपर कपडेका सिला हुवा वैसाही सफेद बनियन. मस्तकपर लाल टिका लगाया हुवा. पुजाके पहिले सुबह सुबह नहा धोकर तैयार होनेसे उनके तेल लगाए हुए बाल और चेहरा एक अनोखे तेज से चमक रहे थे. सरपंच एक अध्यात्मीक व्यक्तीत्व लग रहे थे. वैसे गणेश और सरपंचजी की तहसीलमें पहलेही पहचान हूई थी. सरपंचजीके आतेही लेटा हूवा गणेश सिधा होकर बैठ गया.

" नमस्ते ... गणेशराव "

" नमस्ते ... "

सरपंचजी गणेशके बगलमेंही दुसरे एक लोडको खिंचकर टेंककर बैठ गए.
गणेशके पिठपर हलकेही थपथपाते हूए सरपंचजीने कहा, " फ़िर कैसन  हो... कुछ तकलिफ तो ना  हूई ना ईहां तक पहूंचनेमें "

गणेश उलझनमें पड गया की हां कहां जाए या ना कहा जाए ... क्योंकी यहां तक की उसकी यात्रा कुछ खांस सुखदायकतो नही हूई थी. .

उसकी उलझन देखकर सरपंचजीने कहां " शुरु शुरु में... तकलीफ तो होवेगीही... इतनी दुर वहभी देहात
मा  और बससे उबड खाबड रास्तेसे आना बोले तो तकलीफ़ तो होवेगीही... लेकिन धीरे धीरे आदत हो  जावे गी..."

सरपंचजीका बोलनेका लहजा एखाद दुसरा लब्ज छोडा जाए तो काफी साफ सुधरा लग रहा था... कम से कम उस देहाती सदा से तो साफ सुधरा था ही. तभी सदा चाय लेकर वहां आ गया.

" अरे सिरफ  चाय ... साथमें कुछ खानेको भी ले आवो भाई .. " सरपंचजी ने उसे टोका.

सदाने चायकी दो प्यालीयां दो हाथमें पकडकर लाई थी. सरपंजीकी सुचना सुनतेही असमंजससा वह दरवाजेमेंही खडा हो गया.

" नही... सरपंचजी... घरसे निकलने के पहलेही मैने नाश्ता किया है... मुझे सुबह उठते बराबर नाश्ता करनेकी आदत जो है. ... "

"अरे नही ऐसे कैसे... आप हमारे ईहा पहली बार आवत  रहे.... "

" नही सरपंचजी ... सचमुछ रहने दिजीए .... "

" अच्छा ठिक है... लेकिन सदा इनके दौपहरके और शामके खानेका इंतजाम करनेके लिए जरा अंदर बता दीज्यो .. "

सदाने अपने चेहरेपर मुस्कान लाते हूए अपना सर सहमतीमें हिलाया और चाय लेकर वह गणेश और सरपंचजीके सामने आकर खडा हो गया. चायकी प्यालीयां उनके हवाले कर वह फिरसे जल्दी जल्दी अंदर चला गया.

" बहुत ही सभ्य आदमी लगता है .. " गणेशने चाय लेते हूए सदा जिस तरफ गया उस तरफ़ देखते हूए कहा.

सरपंचभी जो चाय पी रहे थे उन्हे चाय पिते हूए अचानक चाय मानो उनके गलेमें अटककर खांसी आ गई.
उन्होने गणेशकी तरफ आश्चर्यसे देखते हूए पुछा, " आपको ये ईहां ले आया ?"

" जी हां "

" हे भगवान ... " हैरानीसे सरपंचजीने अपने मस्तकपर हाथ मारते हूए कहा.

" क्यो क्या हूवा ? "
" कुछ नाही "

आगे और सरपंचजीने कुछ नही कहां और वे फिरसे अपनी चाय पिनेमें व्यस्त हूए देखकर गणेशने कहा,

" आप नही जानते ... मेरी पहचान ना होते हूए भी उसने बस स्टॉपसे मेरा सामान यहांतक उठाकर लाया... और रास्तेमें बाते कर मेरा मनोरंजनभी किया... सचमुछ ऐसे सज्जन और सभ्य लोग देहातमेंही मिलना मुमकिन है... और वेभी बहुत कम .. अपनी उंगलीयोंसे गिनती हो इतनेही होंगे... ... "

" सज्जन? ... कौन सदा ? " सरपंचजीने आश्चर्यसे पुछा.

गणेश सरपंचजी सदाके बारेंमे आगे क्या कहते है इसकी राह देखने लगा. लेकिन सरपंचजी इतनाही कहकर आगे चुप रहे.

" क्यों क्या हुवा ? ... मुझे तो बहुत सज्जन लगा वो "

" कुछ ना ही ... धीरे धीरे आपको सब समझमें आ जावेगा ... " इतना कहकर सरपंचजीने बातोंका रुख बदल दिया.

" अब दिनभर क्या करने का इरादा है ... मेरा मतलब ई  है  के ... कुछ आराम कर काम शुरु करेंगे या अभी तुरंत... ... "

सरपंचजीने बातोंका रुख बदलनेकी बात  गणेशके खयालमें आगई. लेकिन उसे भी उसीके बारेंमें और कुरेदकर पुछना अच्छा नही लगा. लगभग तीनचार घंटेकी यात्राके बाद गणेश काफी थक गया था. उसमे तुरंत अभी काम शुरु करनेका उत्साह बाकी नही था. गणेश सोचमें पड गया.

क्या किया जाए? ...

तुरंत काम शुरु किया जाए?...

या थोडे आराम के बाद?...

सरपंचजीने मानो उसके मनमें चल रहा द्वंव्द भांप लिया.

" ठिक है ... ऐसा किजीयो ... थोडा विश्राम करियो ... तबतक खाना बन जावे गा ... और फिर खाना खानेके बाद ही कामको शुरवात करते है... "

" हां ठिक है ... वैसेही करेंगे... " गणेश अपने पैर थोडे फैलाते हूए बोला.

" और आप बिनदास्त आराम किजीयो ... एकदम पुरा  लेटकर... मै सदाको दरवाजा बंद करनेके लिए कहे देता हूं ऐसा बोलते हूए सरपंचजी बैठकके बाहर निकल गए.

क्रमश:

Courage is not the absence of fear, but rather the judgement that something else is more important than fear.

-Ambrose Redmoon

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Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
—Oscar Wilde


बससे  उडा धूल और धुंआ स्थिर होकर निचे बैठनेके बाद गणेशने अपने आसपास देखा, जेबसे रुमाल निकालकर अपना चेहरा साफ किया, और बिखरे हूए बाल व्यवस्थित करनेका प्रयास किया, और कपडोंपर जमी धुल झटकनेका प्रयास किया.  जानवरके तबेलेके सामने पेढ की छांवमें, पुराने लकडीके लट्ठेपर कुछ लोग बैठे हुए थे। कोई बिडी फुंक रहा था तो कोई चिलम फुंक रहा था. सारे लोग गणेशकी तरफ ऐसे देख रहे थे मानो वह किसी दुसरी दुनियासे वहां आया हो. ऐसा पँट शर्ट पहना हुवा साफ सुथरा आदमी यहाँ बहुत ही कम आता होगा. गणेश उनकी तरफ बढने लगा. अपने हथेलीपर तंबाकू मसल रहे एक आदमीके पास जाकर वह खडा हो गया. उस आदमीने बाएं हथेलीपर मसले हुए तंबाकुके आसपास दाएं हाथसे थपथपाकर तबांकूकी धूल फुंककर उडा दी. और फिर उस बचे हुए मसले हूए तंबाकूकी चूटकी बनाकर अपना गालका जबडा एक हाथसे खिंचते हूए, दांत और गालके बिचमें रख दी.

" सरपंचका घर किधर है ? " गणेशने उस देहातीसे पुछा.

वह देहाती लकडीके लट्ठेसे उठकर गणेशके सामने आकर खडा हो गया. गणेश अब उसके जवाबकी राह देखते हूए उसकी तरफ देखने लगा. लेकिन वह आदमी किसी गुंगेकी तरह हाथसे इशारे कर कुछ बतानेकी कोशीश करने लगा. आखिर उसने गणेशको बाजु हटाकर उसके मुंहमें जमा हुई तंबाकूकी लार एक तरफ मुंह करते हूए थूंक दी और फिर बोला,

" सरपंचजीका मेहमान जी ? "

' हां ' गणेशने सर हिलाकर जवाब दिया.

उस देहातीने झटसे गणेशके हाथमें थमी बॅग अपने हाथमें ली और वहाँसे आगे चल पडते हूए बोला, " पिछे पिछे आवो जी "

कितना अच्छा आदमी है ...

मैनेतो सिर्फ पता पुछा और यह तो अपनी बॅग लेकर मुझे वहां लेकरभी जा रहा है ...

गणेशने सोचा. गणेश चुपचाप उसके पिछे पिछे चलने लगा.

" तहसिलसे आए हो  का ? " उसने दुसरे हाथसे अपनी धोती ठिक करते हूए पुछा.

" हां " गणेशने जवाब दिया.

शायद सरपंचने उसे यहां मुझे लेनेके लिएही तो भेजा नही ?...गणेशने सोचा.

" मुझे लेनेके लिए संरपंचजीने भेजा है आपको ?" गणेशने पुछा.

' ना  जी  ... वो क्या है  ना जी ..  सरपंचजीका मेहमान माने  ...  गांवका मेहमान " वह गणेशके सवालका रुख समझते हूए बोला.

"  सरपंचजी मतलब हमरे गांवकी श्यान है ...  गांवकी जोभी तरक्की होवे  है ...  सब  सरपंचजीके  किरपासे  ... पहले तो यहां भूर्मलभी नही आवत रही  ... "

" भूर्मल ?" गणेशने प्रश्नार्थक मुद्रामें पुछा.

"  माने  ... एस्टी... वो तुम बड़े लोगन का कहत रहे ....  बस... बस" वह खिलखिलाकर हसते हूए बोला.
वह आगे बोलने लगा " साहेब एक दफा क्या हुवा ... हमरी  चाचीके भाईके लडकेने शहरसे  लडकी ब्याहके लाई ... साहेब वे  बडे अच्छे लोगन रहे  ... शादीका क्या ठाठ रहा  .. के वे लोगन भी चाट हुयी गवा ... हमको भी न्यौता रहा शादीका  .... एकबार  घरमें सारे लोगन साथ  साथ खाना खाने बैठे रहत ...  बेचारी नई  दुल्हन सबको परोस रही ....  वह अपने आदमीको शार परोस रहत   ... वह बोला बस... बेचारी  इधर उधर देखन रही  ... बर्तनसे शारकी धार  चलती रहत  ... हमरे चाचाका लडका बडा गुसैल .... चिल्लाया ना जी  वो उसपर ... जोरसे चिल्लाया ... '' बस...बस...'' क्या करेगी वो   बेचारी... डर की मारी....  फटाक से निचे वही उसके सामने बैठ गई."
गणेश खिलखिलाकर हसने लगा. वह देहातीभी हंसने लगा.

" अब उसकी तरफ देखयो ...  पहचानो भी  नही ... की उसने घरवाली शहरसे लाई है करके...  बहूत टरेन किया है हमारे चाची के भाईने ... अब मस्त जाती है खेतमें....  " उसने पिछे गणेशकी तरफ मुडकर देखते हूए कहा.

गणेश उसकी तरफ देखकर मंद मंद मुस्कुराया.

" आप तो बडी मजेदार बाते करते हो भाई .... अरे हां आपका नाम पुछना तो मै भूलही गया.

" सदा ... सदा   है हमरा नाम""

" मतलब आप सदा ऐसीही मजेदार बाते करते होंगे इसलिए आपका नाम सदा रखा गया होगा " गणेशने मजाकमें कहा.

" क्या साब आपबी मस्करी करते हो गरीब आदमीकी " वह शरमाकर बोला.

चलते हूए वे एक बडे मैदानसे गुजरने लगे.

" यहां हमरे गांवका बाजार होता है ... बस्तरवारको " सदाने कहा.

"बस्तरवारको ?"

"माने  गुरवार साब " वह हसते हूए बोला. .

" अच्छा " गणेशने उस खुले मैदानपर अपनी दृष्टी फेरते हूए कहा.

बस्तरवार ... यानीकी बृहस्पतीवारका वह भ्रष्ट अविश्कार होगा शायद ... गणेशने सोचा.

फिर सदा गणेशको दो तिन छोटी छोटी गलियोंमें लेकर गया. सामने एक जगह वे बजरंग बलीके मंदिरके सामनसे गुजर गए. मंदिर एक बडे उंचे चौपाहे पर, जिसे वे लोग पार कहते थे, बसा हुवा था. बगलमें एक बडासा बरगदका पेढ था. और पेढके बगलमें, वॉटर सप्लाय डिपार्टमेंटने बंधी हूई एक बडी पाणीकी टंकी थी.

" ये हमरे गांवका पार सायेब, ईहां इस बरगदकी पेढकी वजहसे बहुत बरकत है...."

"बरकत?"

" माने मतलब इहां इस पेढकी वजहसे मस्त ठंडी ठंडी छाव होवे  है.. लोग बाग  तो बैठतेही है ... साथमें थके हारे कुत्ते बिल्ली, गाय भैस जैसे जानवरभी बैठते है ... ईहां पेढकी छांवमें "

" आप लोगोंके गांवमें पाणीका नलभी आया हुवा दिख रहा है " पाणीकी टंकीकी तरफ देखते हूए गणेशने पुछा.
पाणीके टंकीके उपर दो चार नटखट बच्चे चढकर खेल रहे थे.

" नल कायका सायेब ... बांधकर रख दी है सिरफ  पाणीकी टंकी ... कभी कभी धुपकालेमें छोडते है पाणी  ... तब बहुत भिड होती है लोगोंकी ईहां "

तभी एक लाल लाल अंजिरजैसा बरगदका फल पेढसे निचे गिर गया. वहां खडे तिनचार बच्चे उधर दौड पडे. उनमेसे एकने बडी सफाईसे वह फल उठाया और बाकि लडकोकों मुंह बिचकाकर चिढाने लगा. उस लडकेने फिर वह फल हल्केसे खोलकर उसमेंके छोटे छोटे किडे सांफ कर, बाकी लडके उससे वह हथीयानेसे पहले झटसे अपने मुंहमें डाल दिया. गणेशने वह किडे देखकर बुरासा मुंह किया था. और आश्चर्यसे वह उस लडकेको देख रहा था.

" अरे सायेब बहुत मस्त लगता है .. तुमभी कभी खाकर देखना... " सदा गणेशका बुरासा हुवा मुंह देखकर बोला.

मंदीरके बगलसे मुडकर सदा गणेशको लेकर आगे जाने लगा. सामने रास्ता पहले गलीसे थोडा चौडा था. रस्तेके दोनो तरफ मट्टीसे बने, गोबरसे सने हूए मकान थे. वही दाई तरफ सामने एक किराने की दुकान थी. किराना दुकानके दोनो तरफ पत्थरसे बने हुए दो चबुतरे थे. वही चबुतरेपर काफी लोग भिड बनाकार बैठे हुए थे. कोई बिडी फूंक रहा था तो कोई चिलम फूंक रहा था. कोई चिलम में तंबाकू भर रहा था को कोई बाते हांक रहे थे. सदा गणेशको वहांसे ले जाने लगा था तो सारी नजरे उसकी तरफ मुड मुडकर देखने लगी. गणेशभी उनकी तरफ देख रहा था. देखते हूए उसकी नजर दुकानके कॅश काऊन्टरपर चली गई. आश्चर्यसे वह उधर देखताही रहा. क्योंकी काऊंन्टरपर एक सुंदर जवान औरत बैठी हूई थी. एक दुकानके काऊंन्टरपर, वहभी इतने पिछडे हूए देहातमें, एक औरतने बैठना इसका उसे आश्चर्य लग रहा था. अब कहा उसके खयालमें आया था की वहां दुकानके दोनो तरफ लोग मधू मख्खीयोंकी तरह इतनी भिड बनाकर क्यों बैठे हूए है. वहां काऊंन्टरपर बैठे औरत का रहन सहन किसी शहरकी औरतसे कम नही था. वह उसकी मुलायम गोरी त्वचा. बाल लंबे. होठोंपर लिपस्टीक लगाए जैसी नैसर्गीक लाली. चेहरा मानो मेकअप किया हो ऐसा साफ सुथरा. सिर्फ वह उसके ठोडीपर गुदे हूए तिन टीके उसके रहन सहनसे मेल नही खाते थे. उसने गुलाबी रंगकी पतली और मुलायम साडी पहनी हुई थी. और मामुली गहरे गुलाबी रंगकाही छोटी छोटी आस्तिनवाला ब्लाऊज पहना हूवा था. उन छोटी छोटी आस्तिनकी वजहसे उसकी वह गोरी, और भरी हूई बाहें औरही मादक दिख रही थी. गणेश पलभर रुककर उसकी तरफ देखनेके अपने मनके लालच को रोक नही सका. उस औरत की तरफ देखकर उसे किसी रेगिस्तानमे गलतीसे कोई गुलाब का फुल उगा हो ऐसा लग रहा था. लेकिन एक बात उसके बिना ध्यानमे आए नही रह सकी, की अगलबगलके लोग जिस तरहसे उसकी तरफ देख रहे थे, कमसे कम उसकी वजहसेतो उस औरतका ध्यान उसकी तरफ जाना चाहिए था. लेकिन वह काऊंटरपर बैठकर अपने दुकानमें आए ग्राहक अटेंड  करनेमें और दुकानमें काम कर रहे नौकरको सुचना देनेमे व्यस्त थी. या कमसे कम वैसा जतानेकी चेष्टा कर रही थी. उसकी हर अदा और अंदाज एकदम बिनदास लग रहा था. आदमी होनेके नाते एक स्त्रीने, और वहभी जब वह उसकी तरफ घूरके देख रहा हो, उसने ऐसी उसकी उपेक्षा करना उसे अच्छा नही लगा. उसके मर्दाना अहंको चोट पहूंची थी. वैसे गणेशभी दिखनेके मामलेमे कुछ कम नही था. एकसे बढकर एक सुंदर युवतीया अबभी, उसके शादीको पांच सालके उपर हो जानेके बादभी, उसपर मरती थी. झटसे उसने अपने आपको संभाला और वह सदाके पिछे पिछे जाने लगा. चलते हूए वह अपने दिमागसे वे विचार झटकर निकालने की कोशीश कर रहा था. लेकिन उसे अपमानीत लग रहा था और दिलमे न जाने क्यूं एक कसकसी जाग उठी थी.

क्रमश:...


Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
—Oscar Wilde

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Thought of the day -
Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
--scar Wilde

कंडक्टरने बजाए बेलसे गणेश होशमें आगया. गाडी रुक गई. उसने बाहर झांककर देखा. उजनी अभीतक नही आई थी.

" उजनी और कितनी दूर है ? " उसने अपने बगलमें बैठे देहातीसे पुछा.

" बहुत दूर है... आरामसे एक झपकी लियो ...  आनेके बाद मै जगाये दूंगा  जी  ... " वह देहाती बोला.

'इतने गढ्ढोसे धक्के देते हूए चल रही बसमें निंद आना कैसे मुमकिन है ? ' उसने मनही मन सोचा.

"धक्कोंका मत सोचियो जी  ...  मानो की झूला झुलाये रहा ...  "

गणेशने चौंककर उस देहातीकी तरफ देखा. उसे इस बातका आश्चर्य हो रहा था की उसने उसके मनकी बात कैसे जान ली थी. उस देहातीने फिरसे अपनी निर्विकार नजर सामने रास्तेपर जमाई.  गणेश फिरसे अपने विचारोंके दुनियामें चला गया.

वह तहसिलकी जगह और वहांके मौहोलसे अच्छा खासा घुल मिल गया था. इसी बिच उसकी शादी होकर उसे एक बच्चाभी हो गया था.

विनय - कितना प्यारा बच्चा....

और पहलाही लडका होनेसे मांको कितनी खुशी हो गई थी...

अपने परिवारको अकेला छोडकर यहां नौकरीके लिए आना उसके जानपर आया था. लेकिन कोई चाराभी तो नही था. उसके बिवीको और बच्चेकोभी यहां देहातमें लाना एक रास्ता था. लडकेको उसने इसी साल केजीमें  डाला था. और यहां देहातमें केजी वैगेरा तो कुछ नही था उपरसे पढने पढानेके लाले थे.

आखिर अपने परिवारके उत्कर्षके लिए उसे इतना त्याग करना जरुरी अपरिहार्य था....

एक जगह बसकी  गति कम हो गई और बस मेन रोडसे  दाई तरफसे एक कच्चे रास्तेपर उतर गई. जैसेही बस कच्चे रास्तेसे चलने लगी बसमें बैठनेवाले धक्कोमें वृध्दी हुई थी. गणेश सामनेके सिटके डंडेको पकडकर सहमकर बैठ गया. गणेशने खिडकीके बाहर झांककर देखा. बाहर हरेभरे खेतमें मजूर काम करते हूए दिख रहे थे. बिचमेंही कही कुव्वेके बगलमें पाणीके पाईपसे गिरता हुवा कांचकी तरह निर्मल पाणी दिख रहा था. खेतमें बसी छोटी छोटी झुग्गी झोपडीयां और उपर आसमानमें उड रहे पंछी और उन्हे डरानेके लिए जगह जगह खडे किए मटकेके सरके पुतले. गणेशका मन मानो उस खेतके दृष्योंमें खो गया था. मानो बसमें बैठरहे जानलेवा झटकोंका उसे विस्मरण हो गया . सचमुछ कितना सुंदर जिवन है यहां देहातका. लेकिन फिर रास्तेके एक तरफसे दौडनेसमान चल रहे कृश और पतले लकडीवालोंको देखकर उसका यहांके जिवनके बारेमें फिरसे मतपरिवर्तन होकर पहलेजैसा हो गया .

अचानक बसमें यात्रीयोंकी हरकत बढ गई. और धुलके बादल बसके चारो तरफ मंडराने लगे. बसने गांवकी हदमें प्रवेश किया था.

" अब आवेगी  उजनी " , बगलमें बैठा देहाती बोला.

बाहर मंडरा रहा धुलका बादल खिडकीके रास्ते बसके अंदर घुस गया. गणेश जल्दी जल्दी खुले खिडकीकी कांच निचे खिसकाने लगा. लेकिन वह कांच अपनी जगहसे हिलनेको तैयार नही थी. वह अब उठ खडा होकर प्रयास करने लगा. वह जी तोड कोशिश करने लगा. तब तक उसका चेहरा धुलसे मलिन हो गया. उसके बगलमें बैठा देहाती उसे देखकर मुस्कुराया.

"कोई फायदा ना होवे  साब ... उसमें धुल घुसकर वहभी  पक्का हो गया है जी  ...  हमारे जैसा ... तुमभी आदत डालियो  ...  आगे अच्छा होवेगा  "

गणेशने उस देहातीकी तरफ सिर्फ देखा और चुपचाप निचे बैठकर खिडकी बंद करनेका प्रयास छोड दिया. अचानक किसी चिजकी बदबु खिडकीके रास्ते गणेशके नाकमें घुस गई. उसने जेबसे रूमाल निकालकर अपने नाकको लगाया. वह देहाती फिरसे मुस्कुराया. गणेशने खिडकीसे बाहर झांककर देखा तो बाहर रास्तेके दोनो तरफ सुबह सुबह लोग लॅटरीनके लिए बैठे थे. और बस आ रही है यह देखकर वे एक एक कर उठ खडे हो रहे थे, मानो बसके सम्मानमें अदबके साथ एक एक करके उठ खडे हो रहे हो. वह गांवके बाहर लोगोंकी शौच के लिए जानेका खुला मैदान था. और उसके बाद एक झरना था, जिसे वहां के लोग नाला कहते थे. नालेपर बिछा टूटनेको आया पुल पार कर बस गांवमें घुस गई.

बस गांवमें घुसतेही चारपांच छोटे छोटे नग्न बच्चोंका कांरवा बसके पिछे दौडने लगा. और बसके दुसरी ओर चारपांच लावारिस  कुत्ते बसके पिछे दौडने लगे. मानो बस आनेसे उस मरीयल देहातमें जान आ गई हो.

' आ गई आ गई ...' कहते हूए, एक जगह रास्तेके किनारे खडे लोगोंने बसका स्वागत किया.

उन लोगोंको बसमें बैठकर आगे जाना था. ड्रायव्हरनेभी, शायद उनका मजाक करनेके लिए, बस उन लोगोंसे काफी आगे ले जाकर खडी की. जैसेही बस आगे जाने लगी वे लोगभी बसके पिछे दौडने लगे. पहलेही वे नग्न बच्चे और कुत्ते उस बसकी पिछे दौड रहे थे, और अब वे लोगभी बसके पिछे दौडने लगे थे. दृष्य काफी मजेदार था. .

जैसेही बस रुक गई, अंदर आनेवालोंकी और बाहर जानेवालोंकी दरवाजेमें काफी भिड जमा हो गई. गणेशने सोचा, थोडी देर रुकते है और भिड कम होनेके बादही बाहर निकलते है. ...

लेकिन कोई रुकनेके लिए तैयार नही था. बाहेरके लोगोंको अंदर आनेकी और अंदरके लोगोंको बाहर निकलनेकी मानो बहुत जल्दी हो गई थी. उपरसे बाहरके कुछ लोग बंदर जैसे खिडकीयोंकों लटक लटककर खिडकीके अंदर रूमाल, टोपी या अपनी थैली सिटपर रखकर अपनी जगह आरक्षीत करने लगे. गणेश वह सारा नजारा देख रहा था. भिड कम नही हो रही है यह देखकर वहभी उतरने लगा, उतरते हूए उसका ध्यान एक खिडकीकी तरफ गया. एक बाहरके अंदर आनेके लिए उत्सुक यात्रीने तो हद्द कर दी थी. उसके पास जगह आरक्षीत करनेके लिए शायद कुछ सामान नही रहा हो, तो उसने सिधे खिडकीसे लटकर अपनी जगह आरक्षीत करनेके लिए खिडकीसे अपनी चमडेकी चप्पल अंदर सिटपर रख दी. गणेशको चिढभी आ रही थी, और हंसी भी. भिडसे किसी तरह जगह बनाकर बाहर उतरते हूए गणेशकी सांस चढ गयी थी. किसी तरह लोगोंसे उलझते सुलझते हूए वह बससे निचे उतर गया. जब वह बाहर आया उसके सारे बाल बिखरे हूए, अस्त व्यस्त हो गए थे. और कपडोंपर झुरीया आकर अव्यवस्थित हो गए थे और शर्टकी इनभी बाहर निकल आई थी. उसे क्या मालूम था की शायद उसने की हुई वह शर्टकी आखरी इन होगी. बाहर आए बराबर खुली हवामें सांस लेनेके बाद कहा उसे अच्छा लगा. वह पल दो पल वही रुक गया. अगले पलही वह बस फिरसे रास्तेकी धुल और डिजलका  धुंआ उडाती हूई आगे निकल गई.

क्रमश:..

Thought of the day -
Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
--- scar Wilde

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The richest man is not he who has the most, but he who needs the least.
nknown Author

गणेशराव कुर्सीपर आरामसे पैर फैलाकर बैठे थे. बिच बिचमें वे दरवाजेसे अंदर बाहर कर रहे लोगोंकी तरफ देख रहे थे. उन्होने एकबार हॉलमे चारो तरफ जमी भिडकी तरफ देखा.

भगवान जाने अब इतने लोगोंमें मेरा नंबर कब आएगा ?...

तभी उन्हे अचानक हॉलमें कही हरकत महसूस हुई. कुछ लोग उठकर खडे हो रहे थे तो कुछ अपनी गर्दन उंची कर एक तरफ देख रहे थे तो कुछ लोग किसीको अभिवादन कर रहे थे.

कौन है ?... सरकार तो नही ?...

उन्हे लोगोंकी भिडसे गुजरता हुवा एक गोरा चिट्टा, उंचा और मजबुत शरीरयष्टीवाला आदमी दिखाई दिया.

अब ये महाशय कौन ?...

वह आदमी दरवाजेसे अंदर चला गया - सरकारसे मिलनेके लिए - बिना झिझक. उसे किसीने नही रोका. वह जानेके बाद भिड फिरसे शांत होकर अपनी जगहपर बैठ स्थिर हो गई.

" कौन था वह ?" गणेशरावने अपनी दाई तरफ बैठे एक आदमीसे पुछा,

उस आदमीने वडी ताज्जुबके साथ गणेशरावकी तरफ देखते हूए पुछा, " क्या इतनाभी नही जानते ?"

गणेशरावने अपनी झेंप छिपानेकी कोशीश करते हूए अपना अज्ञान प्रकट किया.

"अरे वे तो अपने मधूकरराव है ... सरकारका खास आदमी ... या दाया हाथही बोल सकते है "

" अच्छा ... अच्छा"

गणेशरावकी बाई तरफ एक सफेद कुर्ता पैजामा पहने एक आदमी अखबार पढते हूए बैठा था. उन्होने जाम्हाई देते हूए उस आदमी की तरफ देखकर कहा , " अब पता नही कितना टाईम लगता है तो ?"

उस आदमीने अखबार वैसाही सामने रखकर अखबारके उपरसे उसकी तरफ गौरसे देखा . " आप तो अभी अभी आए ना ? "

" जी हां " गणेशरावने जवाब दिया.

" मै पिछले दो दिनसे चक्कर काट रहा हूं ... लेकिन उनसे मिलनेका मौकाही नही मिल रहा है ... '"ऐसा मानो वह गर्वके साथ कहकर फिरसे अपना अखबार पढनेमें व्यस्त हो गया.

गणेशरावके चेहरेपर मायूसी छा गई थी. पलभरके लिए उसका वहांसे उठकर जानेका मन हुवा.

लेकिन नही ... मिलना तो जरुरी है ...

अपने लिए नही तो कमसे कम अपने लडके के लिए ...

कुछ देर बाद कुर्सीपर बैठे बैठे ही उनकी विचारोंकी श्रुंखलाने अपना रुख अतितकी तरफ किया. उन्हे याद आ रहा था की 20-25 साल पहले एकबार उन्हे ऐसेही, इससे मिल - उससे मिल ऐसा करना पडा था. और इतने सारे प्रयास करनेके बादभी उनकी पोस्टींग देहातमेंही हो गई थी.

अबभी तो वैसाही नही होगा ना ? ...

पिछली बारसे इसबार उन्हे अपना तबादला रोकना जादा जरुरी लग रहा था. क्योंकी तब वे जवान थे. सारी मुश्कीले सहन कर सकते थे. सोचते हूए उन्हे अपने जवानी के बिती हुई बाते याद आने लगी थी .....



.... बस घाटीमे दाएं-बाएं मुडती हुई आगे चल रही थी. गणेश बसके खिडकीके पास अपने सिटपर बैठा था. उसकी बगलमें एक देहाती बैठा था. बसकी चलनेकी वजहसे होनेवाली मचलनसे बचनेके लिए गणेश खिडकीसे बाहर घाटीमें दिख रही हिरियालीपर अपना ध्यान केंद्रीत करनेकी कोशीश कर रहा था. उसने बसमें बैठे बाकी यात्रीयोंपरसे अपनी नजरे घुमाई. कोई बैठे बैठेही झपकियां ले रहे थे तो कोई आपसमें बाते हाक रहे थे. गाडीके बिचवाले खाली जगहमेंभी कुछ यात्री खडे हूए थे. कोई बिचमें खडे लोहेके खंबेका सहारा लेकर खडे थे तो कोई बगलके सिटका सहारा लेकर खडे थे. उस भिडसे रास्ता निकालते हूए कंडक्टर अपनी जगहपर चला गया. अपने सिटपर बैठे आदमी की तरफ उसने सिर्फ घूरकर देखा. उस बैठे हूए आदमीने चुपचाप वहांसे उठकर कंडक्टरको बैठनेकी जगह दे दी. कंडक्टरने बैठतेही अपनी टिकटवाली बॅग खोली और उसमेंसे एक कागज और पेन निकाला. पेन कानके पिछे लगाते हूए उसने कचरेके टोकरीमें फेंकनेके लायक एक सिकुडा हुवा कागज खोला. फिर वह एक हाथसे टिकटकी बॅग उलटपुलटकर  टिकटके नंबर देखकर दुसरे हाथसे कानके पिछेसे पेन निकालकर कागजपर लिख रहा था. वह यह सब इतनी सफाईके साथ कर रहा था की मानो उसे उसका कोई खास ट्रेनिंग दिया गया हो. नही तो बस चलते वक्त -इतनी हिलनेके बाद किसी कागजपर लिखना मुश्कीलही नही तो लगभग नामुमकीन था.

गणेशने फिरसे अपनी नजर बाहर हरियालीपर जमाई. उसका सोचचक्र फिरसे शुरु हो गया था. कितनी जी तोड कोशिश करनेके बादभी उसपर यह नौबत आ गई थी. पांच सालतक वही तालूकेकी कोर्टमें उसने डेली वेजेसपर कुछ लिखापढीका काम किया था. फिर शादीभी की. अब पांच सालके बाद काफी मशक्कतके बाद गणेशका ग्रामसेवककी हैसीयतसे चयन हुवा था. ग्रॅजूएट होकरभी उसपर ग्रामसेवक के हैसियतसे काम करनेकी नौबत आई थी. वहभी सर्विस इतनी आसानीसे नही मिली थी. सतरा लोगोंको मिलकर, पहचान निकालकर, मन्नते करकर, उनके पैर पकडकर और उपरसे पैसेभी देकर... तब कहा उसे ग्रामसेवककी सर्विस मिली थी. सर्विस मिलनेके बाद सवाल था कहां जॉइन करना पडेगा. गणेशको तहसिलके पास लगभग 4-5 किलोमिटरके दायरेके अंदरही जॉइन करना पडे ऐसी इच्छा थी. फिरसे मिन्नते, हाथपैर जोडना और पैसे देनाभी आगया था. वहभी किया. लेकिन नही. जो नही होना था वही हो गया था. वह अपनी पोस्टींग आसपास कही नजदिक नही कर पाया था. नौकरी लगानेके वक्त लगाए वजनसे इसबार लगाया गया वजन शायद कम पड गया था. और आखिर अपनी इच्छाको मोडकर उसे तहसिलसे 50 किलोमिटर दुर बसे उजनी नामके देहातमें जाकर जॉईन करना  था. आज वहां जानेका उसका पहला दिन था.

क्रमश:...

The richest man is not he who has the most, but he who needs the least.
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When a person can no longer laugh at himself, it is time for others to laugh at him.
homas Szasz


गणेशराव और विनय सामने एक बडेसे कंपाऊंडमें जाने लगे. कंपाऊंडके गेटपर उन्हे वहां तैनात सेक्यूरीटी गार्डने रोका. जब उन्होने अपनी पहचान बताकर उनकी अंदर जानेकी वजह बताई, तभी उन्हे अंदर जानेकी रजामंदी दे दी गई. वे कंपाऊंडके गेटसे अंदर जाकर एक चौडे रस्तेसे, जिसकी दोनो तरफ उंचे उंचे पेढ लगे गए थे, अंदर जाने लगे. रास्तेके दोनो तरफ अशोक और निलगीरीके काफी उंचे पेढ लहरा रहे थे. जैसे जैसे वे अंदर जा रहे थे बंगलेका थोडा थोडा हिस्सा उनके दृष्टीके दायरेमें आने लगा था. जब वे बंगलेके एकदम पास गए, तब पुरा बंगला उनको दिखने लगा था.

वह बंगला कहां ! वह तो एक राजमहल था....

 उसके चारो तरफसे काफी खुली जगह थी, जिसमें बडे बडे पेढ उगाए गए थे, जिसकी वजहसे बाहरसे आनेवालेको पहले वह पेढही दिखते थे. बाहरसे देखनेके बाद उन पेढोंके भिडमें कही बंगला छुपा हुवा होगा ऐसा कतई लगता नही था. जब वे बंगलेके करीब पहुंच गए, उन्होने देखा की वहां तो मानो लोगों का जुलुस लगा हुआ था . बंगलेके आसपासके पेढोंके साएमें लोगोंके समुह बैठे हुए थे. कोई धोती पहने हुए, कोई पैजामा पहने हुए तो कोई पँट शर्ट पहने हुए, वहां हर तरहके लोग मौजुद थे. धोती पहने हुए गांवके लोग वहा जादा मात्रामें नजर आ रहे थे. उसीमें कुछ खादीके कपडे पहने हूए और पैजामा या धोती पहने हूए लिडर लोग या खुदको लिडर समझने वाले लोग इधर उधर घुम रहे थे. गांधी टोपी और वहभी अगर तिरछी पहना हुवा आदमी हो तो वह लिडर होना चाहिए ऐसा गणेशरावके मनमें कही संग्रहीत किया गया हुवा था. ऐसे लोगोंके बारेमें गणेशरावके मनमें एक डरसा बैठा हुवा था. इसलिए गणेशराव जितना हो सके उतना इन लोगोंके आसपास जानेसे बचते थे. लेकिन आज नौबत ही वैसी आ गई थी, जिसपर उनका कोई काबु नही था.

लोग बाहर अपनी बारी कब आती है इसकी राह देखते हूए रुके हूए थे.

लेकिन मुझे ऐसे राह देखनेकी कोई जरुरत नही होगी ...

मेरीतो सरकारके साथ एकदम नजदिकी पहचान है ...

ऐसा सोचते हूए गणेशरावने उनके आसपास अपनी बारी आनेके लिए रुके हूए लोगोंपर अपनी नजरे घुमाई. उस  नजरमें, कोशीश करनेके बावजुत एक कुत्सित भाव आ ही गया था.

" विनू चलो हम सिधे अंदर जाएंगे " गणेशरावने विनूसे शेखी बघारते हूए कहा.

दोनो बंगलेके अंदर गए. बंगलेके अंदर, बिचोबीच लोगोंको प्रतिक्षा करनेके लिए एक बडा हॉल था. उसमें लोगोंको बैठनेकी व्यवस्था की हुई थी. गणेशराव विनयको लेकर उस हॉलमें आ गए. हॉल लोगोंसे खचाखच भरा हुवा था. गणेशरावने एक बार उन प्रतिक्षा कर रहे लोगोंपरसे अपनी नजरे घुमाई. कुछ लोग किसी लिडरकी तरह अच्छी तरहसे इस्त्री किए हूए कपडे पहनकर बडे ठाठके साथ वहां बैठे हूए थे. कुछ लोग बेबस लाचारसे, अपनी बारी कब आती है यह देखते हूए दरवाजेकी तरफ टकटकी लगाकर बैठे हूए थे. इतने सारे लोग और उनमेसे कुछ अपनेसे बडे लोग पाकर गणेशको अपना आत्मविश्वास डगमगासा लगने लगा. लेकिन नही अपनी सरकारके साथ इतनी नजदिकी पहचान होनेके बाद डरनेकी कोई बातही नही होनी चाहिए. उन्होने अपने दिमागमें आए हिनताके भावनाको झटक दिया. उन्होने इधर उधर देखते हूए, वहां मौजुद चारपाच दरवाजोंमेसे सरकारसे मिलनेके लिए जानेका कौनसा दरवाजा होगा यह निश्चित किया और वे सिधे उस दरवाजेसे अंदर जाने लगे. .
एक तगडा आदमी उनके बिच आया और उसने इशारेसेही 'क्या काम है ?' ऐसे अशिष्टतासे पुछा. .

'' सरकारसे मिलना है ? "

" यह सारे लोगभी उनसे मिलनेके लिएही बैठे हूए है "उसने गुस्ताखी करते हुए कहा.

" नही मेरी सरकारसे एकदम नजदिकी पहचान है " गणेशरावने गर्वके साथ कहा.

उसने गणेशरावकी तरफ उपरसे निचे देखा और कुत्सित भावसे हसते हूए बोला.
" भाई साहब ... सारे लोग यही कहते है ... वो वहां ... उस तरफ उस काऊंटरपर जावो ... अपना नाम पत्ता और क्या काम है यह एक परची पर लिखकर यहां दे दिजीएगा. ..और फिर आपका नाम जब पुकारा जाएगा तब आप अंदर जाईए.

"लेकिन .."

" भाई साहब अगर आपकी सचमुछही नजदिककी पहचान होगी तो आपको जल्दीही अंदर बुलाया जाएगा." उस आदमीने जैसे उन्हे बेवकुफ समझते हुए कहा.

फिरभी गणेशराव वहांसे हटनेके लिए तैयार नही है ऐसा पाकर एक दुसरे आदमीने हस्तक्षेप करते हूए उन्हे सबकुछ ठिकसे समझाया. अपना हुवा अपमान गणेशरावके चेहरेपर स्पष्ट दिख रहा था. आपना अपमान पिकर विन्याकी नजरसे बचते हूए वे चुपचाप उस काऊंटरके पास गए. वहांभी कतार लगी हुई थी. चुपचाप जाकर वे कतारमें लग गए. विन्याभी जानबुझकर उनकी आखोंमे देखनेकी कोशीश कर रहा है ऐसे गणेशरावको महसूस हुवा.

यह ऐसी है तुम्हारी नजदिकी पहचान? ...

इस अपमानसे तो पहचान नही होती तो अच्छा होता ...

कमसे कम इतना अपमान तो नही हुवा होता ...

शायद ऐसा विन्याको कहना होगा ऐसे गणेशरावको तिरछी नजरसे विन्याकी तरफ देखते हूए महसुस हुवा.

कतारमें अपना नंबर आनेके बाद काऊंटरपर अपना नाम पता और मिलनेका उद्देश लिखा हुआ परचा देकर गणेशराव हॉलमें बैठनेके लिए खाली कुर्सी ढूंढने लगे. पहले हॉलमें एक नजर दौडाई, फिर हॉलमें एक चक्कर लगाया. हॉलमें एकभी कुर्सी खाली नही थी. विन्या दरवाजेमेंही अपने पिताकी तरफ चिढकर देखता हूवा खडा हो गया. आखिर गणेशराव अपने लडकेकी तरफ उसकी तिखी नजरसे बचते हूए जाने लगे.

" गणेशराव सायेब... " अचानक पिछेसे आवाज आ गया. .

गणेशरावने आश्चर्यसे मुडकर देखा.

चलो कमसे कम यहां कोईतो मुझे पहचानता है ...

उन्हे राहतसी महसूस हुई थी. उन्होने पिछे मुडकर देखनेसे पहले गर्वसे एक कटाक्ष अपने लडकेकी तरफ डाला. उसके चेहरेके भावमें कोई फर्क नही था. उन्होने पिछे मुडकर देखा तो एक देहाती उन्हे आवाज देते हूए कुर्सीसे उठकर खडा हुवा था. वे उसे नही पहचानते थे. लेकिन शायद वह उन्हे जानता था. अब नोकरीके वजहसे हजारो लोगोंसे पाला पडता है. सबकी पहचान रखना जरा मुश्किलही था और उपरसे ढलती उमर. याददाश्त भी  पहलेजैसी तेज नही रही थी. मुस्कुराकर उन्होने उसकी तरफ देखा .

" आईए साहेब ... यहां बैठिए. "

उस देहातीने उन्हे कुर्सी ऑफर करते हूए कहा. वे खुशीसे चलते हूए उस देहातीके पास गए. उस देहातीके पिठपर प्यारसे थपथपाते हूए बोले.

" अरे ... रहने दो ... तूम बैठोना ... हम बाहर जाकर रुकते है ... "

" नही साब ... ऐसा कैसे ... हमने बैठना और आपने खडा रहना ...आप बैठिए .." उसने नम्रतासे कहा. .

उन्हे उसे वहांसे उठाकर वहा बैठना ठिक नही लग रहा था और उसने दिया सन्मानभी तोडनेका मन नही कर रहा था. आखिर वह उसके आग्रहका मान रखते हूए उस कुर्सीपर बैठ गए. कुर्सीपर बैठकर उन्होने दरवाजेकी तरफ देखा. उनका लडका वहां नही दिख रहा था.

शायद बाहर जाकर खडा हुवा होगा... खुली हवामें ...

" मै बाहर हूं साब .. " कहते हूए वह देहातीभी हॉलसे बाहर निकल गया.


वह इतने जल्दी बाहर निकल गया की गणेशरावको उसे 'धन्यवाद' कहनेकाभी मौका नही मिला.

... क्रमश:...


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