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Hindi literature blog - Novel - Madhurani CH-2 - रिक्षावाला

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Hindi literature blog - Novel - Madhurani CH-2 - रिक्षावाला

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You can do anything, but not everything.
avid Allen

गणेशराव और उनका लडका विन्या एक रिक्षामें बैठकर निकल दिए - बंगलेकी तरफ रिक्षामें गणेशरावके बगलमें स्पंजके सिटपर एक सीट खाली थी. लेकिन विन्या गणेशरावके बगलमें ना बैठते हूए सामने एक लकडीका तख्त था उसपर बैठ गया. गणेशरावने उसे उनके बगलमें बैठनेका आग्रहभी किया लेकिन,

" नही यहीं ठिक है ... यहा हवा अच्छी लगती है " उसने कहा.

गणेशरावको पता था की वहा लकडीके तख्तपर बैठनेसे या यहां स्पंचके सीटपर बैठनेसे लगनेवाली हवामें कुछ फर्क नही पडनेवाला था.

जनरेशन गॅप दुसरा क्या ...

या शायद मै ही अपने लडकेके साथ एक दोस्तकी तरफ नजदिकी बनानेमें नाकामयाब रहा हू....

क्या करे अपने जिंदगीका गणित पहलेसेही गलत होता गया ...

शादीके लिए लडकियां देखते वक्त गडबड हो गई और ऐसी गुसैल बिवीसे पाला पडा..

लेकिन पहले वह इतनी गुसैल नही थी ...

वह अभी अभी पिछले पाच छे सालोंसे इतनी गुसैल हो गई ...

की उसेभी ऐसाही लगता होगा की गलत शौहर मिल गया ...

और वह तो वह यह बददिमाग लडका पल्ले पड गया ...

अपने नौकरीकी वजहसे मै उसके पढाईपर उतना ध्यान नही दे सका शायद यहभी वजह होगी ...

लेकिन लोगोंके बच्चे तो हैही जो अपने लडकोंके पढाईपर बिलकूल ध्यान नही दे सकते...

फिर वे कैसे आगे जाते है ..

अपना लडकाही मुढ है और क्या ...

उसकी उम्रके जब मै था तब उसका जनम हुवा था ..

और इसका तो अभी नौकरीकाही कुछ नही है ...

शादीकी तो दूरकी बात है ...

क्या करे अपनी किस्मतही खोटी है और क्या ?...

तभी रस्तेपर चढाई आ गई थी और रिक्षावाला निचे उतरकर रिक्षा खिच रहा था. रिक्षा खिंचनेवाला अपनी पुरी ताकदके साथ रिक्षा खिंच रहा था. रिक्षा खिंचते हूए उसके काले पैर और हाथकी मांसपेशीयां कैसी उपर निचे हो रही थी. और नसें तो ऐसी फुल गई थी मानो ऐसा लग रहा था की कब फट जाएगी ? उपरसे ग्रिष्मकी सुबहकी तपती धुपसे उसे पसिना छुट गया था. पसिना शायद धूपसे जादा उसे होनेवाले शारीरीक कष्टसे छुट गया था. गणेशको रिक्षावालेकी दया आ रही थी.

" रुको मै उतरता हूं ... ताकी आपको आसान जाएगा .." गणेशरावने कहा. .

रिक्षावाला कुछ नही बोला. वह अपना रिक्षा खिंचनेमेंही लीन था. गणेशराव रिक्षा धीमा होनेपर रिक्षासे निचे उतर गए. विन्याने तुच्छताके साथ अपने बापकी तरफ देखा और रास्तेके किनारे दिखनेवाले दुकानोंकी तरफ देखता हुवा रिक्षामे बैठा रहा.

" अरे उतर क्यों गए ... बैठीए ... यह खतम होगई चढाई... और फिर ढलानही ढलान ..." रिक्षावालेने कहा. .

चढाई खत्म होगई वैसे रिक्षावाला रुक गया और गणेशराव रिक्षेमें चढ गए. रिक्षावालाभी उसके सिटपर चढकर बैठ गया. और फिर ढलानपर रिक्षा पायडल ना मारते हूएभी दौडने लगी. वही अभी अभी दुखी परेशान दिख रहा रिक्षाचालक मस्तीसे उलटा पायडल घुमाते हूए खुशीसे सिटी बजाने लगा था.

अब इसे क्या कहा जाए ...

गणेशराव सोच रहे थे.

आदमी इतने मुष्कीलोंमेभी खुशी ढुंढ सकता है ...

इसका मतलब खुश रहना तुम्हारे हालातपर निर्भर नही करता तो वह तुम्हारे जीवनकी तरफ देखनेके दृष्टीकोणपर निर्भर करता है ..

इस रिक्षावालेसे अपने हालात हजार गुना अच्छे है ...

फिरभी हम ऐसे हमशा दुखी क्यो रहते है ...

रिक्षा एक चारो तरफसे बडे बडे पेढ थे ऐसे एक विस्तीर्ण कंपाऊंडके सामने रुक गई. गणेशराव और विन्या रिक्षासे निचे उतर गए.

" कितने हो गए " गणेशरावने पुछा.

" चार" रिक्षावाला कंधेपर रखे रुमालसे अपना पसिना पोंछते हूए बोला.

गणेशरावने एक पांच रुपएकी नोट निकालकर उसके हवाले कर दी. उसने वह ली और पैजामेंके पहले दाई और फिर बाई जेबमें वह एक रुपएका सिक्का ढूंढने लगा.

' रहने दो ... वह एक रुपया अपने पासही रख लो ' ऐसा लगभग गणेशरावके मुंहमें आया था.

लेकिन नही ...

विन्या घर जानेके बाद चिल्लाएगा ...

मुझे देनेके लिए आपकेपास पैसे नही होते है ...और उस रिक्षावालेको मुफ्तमें देनेके लिए होते है ...

उस रिक्षावाल्याने एक रुपएका सिक्का ढुंढकर गणेशरावके हाथपर रख दिया. उन्होने वह अपने शर्टके बाएं जेबमें रख दिया. उन्होने वैसी आदतही डाल रखी थी. रेजगारी नोट सब उपरकी जेबमें, रेजगारी सिक्के सब बाई जेबमें और बडी नोट सब शर्टके निचे पहने कपडेके बनियनकी छुपी जेबमें.

क्रमश:...

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