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Hindi literature blog - Novel - Madhurani CH-2 - रिक्षावाला

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Hindi literature blog - Novel - Madhurani CH-2 - रिक्षावाला

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गणेशराव और उनका लडका विन्या एक रिक्षामें बैठकर निकल दिए - बंगलेकी तरफ रिक्षामें गणेशरावके बगलमें स्पंजके सिटपर एक सीट खाली थी. लेकिन विन्या गणेशरावके बगलमें ना बैठते हूए सामने एक लकडीका तख्त था उसपर बैठ गया. गणेशरावने उसे उनके बगलमें बैठनेका आग्रहभी किया लेकिन,

" नही यहीं ठिक है ... यहा हवा अच्छी लगती है " उसने कहा.

गणेशरावको पता था की वहा लकडीके तख्तपर बैठनेसे या यहां स्पंचके सीटपर बैठनेसे लगनेवाली हवामें कुछ फर्क नही पडनेवाला था.

जनरेशन गॅप दुसरा क्या ...

या शायद मै ही अपने लडकेके साथ एक दोस्तकी तरफ नजदिकी बनानेमें नाकामयाब रहा हू....

क्या करे अपने जिंदगीका गणित पहलेसेही गलत होता गया ...

शादीके लिए लडकियां देखते वक्त गडबड हो गई और ऐसी गुसैल बिवीसे पाला पडा..

लेकिन पहले वह इतनी गुसैल नही थी ...

वह अभी अभी पिछले पाच छे सालोंसे इतनी गुसैल हो गई ...

की उसेभी ऐसाही लगता होगा की गलत शौहर मिल गया ...

और वह तो वह यह बददिमाग लडका पल्ले पड गया ...

अपने नौकरीकी वजहसे मै उसके पढाईपर उतना ध्यान नही दे सका शायद यहभी वजह होगी ...

लेकिन लोगोंके बच्चे तो हैही जो अपने लडकोंके पढाईपर बिलकूल ध्यान नही दे सकते...

फिर वे कैसे आगे जाते है ..

अपना लडकाही मुढ है और क्या ...

उसकी उम्रके जब मै था तब उसका जनम हुवा था ..

और इसका तो अभी नौकरीकाही कुछ नही है ...

शादीकी तो दूरकी बात है ...

क्या करे अपनी किस्मतही खोटी है और क्या ?...

तभी रस्तेपर चढाई आ गई थी और रिक्षावाला निचे उतरकर रिक्षा खिच रहा था. रिक्षा खिंचनेवाला अपनी पुरी ताकदके साथ रिक्षा खिंच रहा था. रिक्षा खिंचते हूए उसके काले पैर और हाथकी मांसपेशीयां कैसी उपर निचे हो रही थी. और नसें तो ऐसी फुल गई थी मानो ऐसा लग रहा था की कब फट जाएगी ? उपरसे ग्रिष्मकी सुबहकी तपती धुपसे उसे पसिना छुट गया था. पसिना शायद धूपसे जादा उसे होनेवाले शारीरीक कष्टसे छुट गया था. गणेशको रिक्षावालेकी दया आ रही थी.

" रुको मै उतरता हूं ... ताकी आपको आसान जाएगा .." गणेशरावने कहा. .

रिक्षावाला कुछ नही बोला. वह अपना रिक्षा खिंचनेमेंही लीन था. गणेशराव रिक्षा धीमा होनेपर रिक्षासे निचे उतर गए. विन्याने तुच्छताके साथ अपने बापकी तरफ देखा और रास्तेके किनारे दिखनेवाले दुकानोंकी तरफ देखता हुवा रिक्षामे बैठा रहा.

" अरे उतर क्यों गए ... बैठीए ... यह खतम होगई चढाई... और फिर ढलानही ढलान ..." रिक्षावालेने कहा. .

चढाई खत्म होगई वैसे रिक्षावाला रुक गया और गणेशराव रिक्षेमें चढ गए. रिक्षावालाभी उसके सिटपर चढकर बैठ गया. और फिर ढलानपर रिक्षा पायडल ना मारते हूएभी दौडने लगी. वही अभी अभी दुखी परेशान दिख रहा रिक्षाचालक मस्तीसे उलटा पायडल घुमाते हूए खुशीसे सिटी बजाने लगा था.

अब इसे क्या कहा जाए ...

गणेशराव सोच रहे थे.

आदमी इतने मुष्कीलोंमेभी खुशी ढुंढ सकता है ...

इसका मतलब खुश रहना तुम्हारे हालातपर निर्भर नही करता तो वह तुम्हारे जीवनकी तरफ देखनेके दृष्टीकोणपर निर्भर करता है ..

इस रिक्षावालेसे अपने हालात हजार गुना अच्छे है ...

फिरभी हम ऐसे हमशा दुखी क्यो रहते है ...

रिक्षा एक चारो तरफसे बडे बडे पेढ थे ऐसे एक विस्तीर्ण कंपाऊंडके सामने रुक गई. गणेशराव और विन्या रिक्षासे निचे उतर गए.

" कितने हो गए " गणेशरावने पुछा.

" चार" रिक्षावाला कंधेपर रखे रुमालसे अपना पसिना पोंछते हूए बोला.

गणेशरावने एक पांच रुपएकी नोट निकालकर उसके हवाले कर दी. उसने वह ली और पैजामेंके पहले दाई और फिर बाई जेबमें वह एक रुपएका सिक्का ढूंढने लगा.

' रहने दो ... वह एक रुपया अपने पासही रख लो ' ऐसा लगभग गणेशरावके मुंहमें आया था.

लेकिन नही ...

विन्या घर जानेके बाद चिल्लाएगा ...

मुझे देनेके लिए आपकेपास पैसे नही होते है ...और उस रिक्षावालेको मुफ्तमें देनेके लिए होते है ...

उस रिक्षावाल्याने एक रुपएका सिक्का ढुंढकर गणेशरावके हाथपर रख दिया. उन्होने वह अपने शर्टके बाएं जेबमें रख दिया. उन्होने वैसी आदतही डाल रखी थी. रेजगारी नोट सब उपरकी जेबमें, रेजगारी सिक्के सब बाई जेबमें और बडी नोट सब शर्टके निचे पहने कपडेके बनियनकी छुपी जेबमें.

क्रमश:...

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Hindi new books - Novel - Madhurani CH-1 - 'स्ट्रेट ट्रीज आर कट र्फस्ट'

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गणेशराव नहा धोकर अपने कपडे पहन रहे थे. सफेद रंगका टेरीकॉटसे बना हुवा नेहरु शर्ट और सफेद उसी कपडेसे बना हुवा पैजामा. उनके शरीरके हरकतोंसे उम्रके लिहाजसे उनका शरीर कुछ जादाही थका हुवा लग रहा था. क्या करेंगे बेचारे उम्र से ज्यादा बीपी, शूगर, अॅसीडीटी ऐसे अलग अलग बिमारीयोंनेही उन्हे परेशान कर रखा था. उन्हे याद आया ...

जब मै जवान था तब पँट शर्ट पहनता था ...

वह भी शुरुवाती दिनोंमे इन वैगेरे करते हूए .... एकदम साफ दुथरे ढंगसे ...

सचमुछ आदमीमें धीरे धीरे कैसा बदलाव आता है ...

अपने चारो ओरके मौहोलका आदमीपर कितना बडा असर होता है ...

इधर गणेशरावकी कपडे पहननेकी जल्दी चल रही थी तो उधर रसोईघरमें उनके बिवीकी बर्तनोकें आवाजके साथ मुंहसे बकबक चल रही थी - हमेशा की तरह.

" 25 साल होगए नौकरी कर रहे है और ... इतने दिनोंमे क्या हासिल किया तो डीपार्टमेंटमें थोडीभी पहचान नही ... अच्छा खासा तालूकेका गाव था ... और उपरसे अपना घरभी यहांही है ... उठा दिया उन लोगोंने और ट्रान्सफर कर फेंक दिया 70 किलोमिटर दूर ... किसी देहातमें ... मतलब हमेशाकी मुश्किल दुर होगई ... मैने कितनी बार कहा ... जादा इमानदारी कुछ कामकी नही ... इमानदार लोगोंको ही इस तरह भूगतना पडता है ''

गणेशरावके दिमागमें एक मुहावरा आगया - 'स्ट्रेट ट्रीज आर कट र्फस्ट' ...

यह मेरे बारें मे लागू होता है क्या ?...

होता है थोडा थोडा ...

किसका वाक्य है यह ?...

किस किताबसे है ?...

कुछ याद नही आ रहा है ...

लेकिन इसी मतलबका कुछ अपने चाणक्यनेभी संस्कृतमें लिख रखा है ...

उसके बिवीकी बकबक अभीभी चल रही थी, "... लेकिन सुनता कौन है ... मै अनपढ जो ठहरी ... किताबोंके ज्ञानसे व्यावहारीक ज्ञान कभीभी श्रेष्ठ होता है ... लेकिन सुनता कौन है मेरी ..."

लेकिन अब गणेशरावसे रहा नही गया. किताबी ज्ञानका उल्लेख उनपर सिधा हमला बोल गया था.
" ... अब तूम जरा तुम्हारी फालतू बकबक बंद करोगी ... अब जाही तो रहा हूं ... उसके लिएही तो बंगलेपर जा रहा हूं ..."वे चिढकर बोले.

" मतलब मेरा बोलना आपको फालतू बकबक लगता है ... इतने सालसे अपनी गृहस्थी मै ही तो संभालती आई हूं ...पिछले बार मेरे भाईने अगर मदत नही की होती तो ना जाने कहा तबादला कर फेंक दिए जाते सडने के लिए ..."

" वह तुम्हारा फेंकु भाई ... कैसी मदत करता है ... उंची उंची फेंकता है सिर्फ "
गणेशरावभी अब झगडनेके मूडमें आये थे.

" देखो ... मै बताके रखती हूं ... मेरे मायकेके बारेंमें कुछ नही कहना "उनके बिवीने कहा.

" और अगर बोला तो क्या करोगी... मुझे छोड दोगी.."

'' वही चाहिए ना तुम्हे... छोडनेके बाद दुसरीसे शादी करनेके लिए''

तभी अंदरसे 25-26 सालका उनका लडका विन्या वहां आगया. वह अच्छा खासा ताकदवर गबरु जवान था और चेहरेसे एकदम कठोर था.

" ए चूप ... एकदम चूप" वह जोरसे चिल्लाया.

" साला ... यहां जीना मुष्किल कर दिया इन बूढों ने "

तब कहा दोनो एकदम चुप हो गए.

अब क्या कहना है इस आजकलके लडकोंको ...

एकदम बुढा कहता है मां बापको ...

लेकिन जानेदो कमसे कम अबभी 'आप' वैगेरा कहनेका लिहाज बाकी है उसमें ...

उतनेपरही संतोष मानना चाहिए ...

उनके लडकेने एक दो बार गुस्सेसे अंदर बाहर किया और गणेशरावका अबभी धीमी गतीसे चल रहा है यह देखकर गुर्राया , " तो बंगलेपर जाना है ना ?"

" हां ... यह देखो हो ही गया है " गणेशराव जल्दबाजी करते हुए बोले.

" और सिर्फ तुम्हारे ट्रान्सफरका लेकर मत बैठो ... मेरे नौकरीकाभी देखो ... वही सबसे महत्वपुर्ण है "

" हां ..." गणेशरावके मुंहसे निकला.

विन्या काला टी शर्ट और निचे जिन्सका पँट पहनकर तैयार था.

" तूम ये कपडे पहनने वाले हो ?... "

" हां .. क्यों क्या हुवा ?... "

" वह दिवालीमें खरीदा हुवा ड्रेस पहनतेतो ... उन लोगोंके सामने यह टी शर्ट और यह पँट अच्छा नही लगेगा.."

" अच्छा नही लगेगा ?... उनको कहना यह ऐसा है मेरा लडका ... और आजकल यही फॅशन है "

" अरे लेकिन ... "

" आप मेरे कपडेबिपडेका मत देखो ... उनसे क्या बात करना है ... कैसी बात करनी है वह देखो बस ."

गणेशराव कुछ नही बोले. उन्होने सिर्फ 'अब इसे क्या कहा जाए ?' इस तरह अविर्भाव करते हूए सिर्फ हवामें हाथ लहराया.

क्रमश:

Perfection is achieved, not when there is nothing more to add, but when there is nothing left to take away.
ntoine de Saint-Exupry

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